ज्योतिष वेदों का चक्षु है।
भारतीय संस्कृति के मूल आधार वेद है। वेद से ही हमें अपने धर्म और सदाचार का ज्ञान होता है।
पारिवारिक, सामाजिक, वैज्ञानिक एवं दार्शनिक विचार धाराओ का श्रोत वेद के छः अंग है।
शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद, ज्योतिष इन्हें षड़-वेदांगो की संज्ञा दी गयी है।
वेदों का सम्यक ज्ञान कराने के लिए इन छः अंगो की अपनी विशेषता है। मन्त्रों के उचित उच्चारण के लिए शिक्षा, कर्मकांड और यज्ञीय अनुष्ठान के लिए कल्प का, शब्दों के रुपज्ञान के लिए व्याकरण का, अर्थज्ञान के निर्मित शब्दों के निर्वाचन के लिए निरुक्ति का, वैदिक छंदों के ज्ञान हेतु छंद का और अनुष्ठान के उचित काल-निर्णय के लिए ज्योतिष का उपयोग मान्य हैं।
ज्योतिष शास्त्र से भूत, भविष्य, वर्तमान, पूर्व जन्म, इस जन्म और आगे के जन्म के हर पल-पल को प्रकट करने वाला ज्योतिष शास्त्र है। हम क्या करेंगे ?, हमारा समय कैसा चलेगा ?, हम क्या-क्या कर सकते हैं ? इसका ज्ञान ज्योतिष शास्त्र से होता है।
ज्योतिष शास्त्र को विज्ञान (Science) कहते हैं । अर्थात ‘अथर्ववेद’ (ज्योतिष, तंत्र एवं चिकित्सा )। तंत्र = Engineering , चिकित्सा = Medical Science
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