आजकल फलित ज्योतिष का ही सर्वत्र उपयोग विशेष रूप से लोग समझते हैं। परन्तु योगनी दशा की तरफ ध्यान नहीं देते। इसलिए फलादेश में उच्च श्रेणी के विद्वान भी सफलता नहीं पाते। इसीलिए योगनी की दशा जानें। योगनी आठ प्रकार की होती है:
  1. 1- मंगला
  2. 2- पिंगला
  3. 3- धान्या
  4. 4- भ्रामरी
  5. 5- भद्रिका
  6. 6- उल्का
  7. 7- सिद्धा
  8. 8- संकटा
ये आठों योगिनियों के नाम भगवान शंकरजी ने श्री पार्वतीजी के समक्ष कहा था यह विचार करना चाहिये ।
जब मनुष्य को प्रतिकूल (विरूद्ध) योगनी की दशा प्राप्त होती है तब कोई ग्रह या कोई पुरूष रक्षा करने में समर्थ नहीं हो सकता है। इसलिये विरूद्ध दशा की शान्ति अवश्य करनी चाहिये, ऐसा करने से मनुष्य संग्राम-भय, राजभय और रोग-भय से मुक्त होकर धन और गौरव को प्राप्त करता है।

1- मंगला की महादशा का फल-
जब मंगला की महादशा प्राप्त हो तब शत्रुकृत्र विपत्तियों का नाश, वाहन हाथी धोड़े धन, रत्न जवाहरात, स्त्री-पुत्र और गृह इत्यादि का लाभ होता है, क्योंकि मंगला की दशा सभी कार्य की सिद्धि के लिए ही होती है।

2- पिंगला की महादशा का फल-
दुःख, शोक-कुल-रोग की वृद्धि बन्धु-बान्धवों से कलह (लड़ाई) होती है, दशा के अंत में भाग्य की वृद्धि और सुख मिलता है।

3- धान्या की महादशा का फल-
धन-धान्य की वृद्धि राजाओं से आदर पाकार सुख की वृद्धि, स्त्री-पुत्रादि से विविधप्रकार के सुख और अनेक तरह से वस्त्र तथा धातु की वृद्धि धान्या की महादशा में होती है।

4- भ्रामरी की महादशा का फल-
परदेश की यात्रा, धन की हानि, चित्त में उद्वेग, स्त्री-पुत्रादि को पीडा सुख का नाश, कर्ज और रोगों की वृद्धि, राजाओं से दण्ड, भाग्य-फल का नाश ये सब इस दशा में होती है।

5- भद्रिका की महादशा का फल-
धन की वृद्धि, गुण का विकास अनुकूल वस्त्रादि का लाभ, राजाओं से मान, अनेक प्रकार के भूषण–सुन्दरी स्त्रीयों-सुखादि का लाभ और अनेक तरह के मंगल (शुभ) कार्य ही भद्रिका की सम्पूर्ण दशा में होते है।

6- उल्का की महादशा का फल-
चित्त में भ्रान्ति, व्याधि से पीडा, ज्वर-प्रकोप से कष्ट, अपने मालिक से नौकरी छूटना तथा स्त्री-पुत्रादि से वियोग बन्धु वर्गो से लडाई, दोस्तो से दुश्मनी इसी तरह के अनेक अशुभ फल उल्का की महादशा में होती है।

7- सिद्धा की महादशा का फल-
राजाओं से आदर, अपने, बंधु-वर्गो से प्रेम, धन-धान्या का लाभ, गुण का विकास, बगीचे, फुलबाडी आदि से सौरव्य, सन्तान की वृद्धि यह अनेक प्रकार से मनुष्य का अभिष्ट सिद्ध करने वाली होती है।

8- संकटा की महादशा का फल-
बन्धु वर्गो से द्वेष, ज्वर प्रकोप तथा स्त्री-पुत्रादि से कष्ट पशु का नाश, सदा विदेश में वास, अपने गृह से उदास हीनता और राजभय, इस तरह अनेक अनिष्ट फल संकटा की महादशा में होते है।