• मृत्यु उपरान्त जातक की क्या गति होगी-इसका ज्ञान भी आर्ष नियमो अनुसार जन्म-कुण्डलीं से किया जा सकता है। निम्नलिखित प्रामाणिक योग है-
  • कुण्डलीं में कही पर भी यदि उच्च (कर्कराशि)-का गुरु स्थित हो तो जातक की अंत्येष्टि धूमधाम से होती है, तथा मृत्यु के पश्चात उत्तम कुल में जन्म होता है ।
  • लग्न में उच्चराशि का हो तथा कोई पाप ग्रह उसे न देखते हो तो जातक की संगती होती है तथा ओग आपने पीछे कीर्ति कथाएँ छोड़ जाता है ।
  • अष्टमस्थ राहु जातक को पुण्यात्मा बना देता है, तथा मरने के पश्चात् वह राज्यकुल में जन्म लेता है, विद्वानों का कथन है ।
  • अष्टम भाव पर मंगल की दृष्टि हो तथा लग्नस्थ मंगल पर नीच शनि की दृष्टि हो तो जातक रौरव नरक भोगता है ।
  • अष्टमस्थ शुक्र पर गुरु की दृष्टि हो तो जातक मृत्यु के पश्चात् वैश्य कुल में जन्म लेता है।
  • अष्टम भाव पर मंगल और शनि – इन दोनों ग्रहो की पूर्ण दृष्टि हो तो जातक अकाल मृत्यु से मरता है ।
  • अष्टम भाव पर शुभ अथवा अशुभ कोसी भी प्रकार के ग्रह की दृष्टि न हो और न अष्टम भाव में कोई ग्रह स्थित हो तो जातक ब्रह्मलोके प्राप्त करता है ।
  • लग्न में गुरु-चन्द्र, 4 भाव में तुला का शनि एवं ७ भाव में मकर राशि का मंगल हो तो जातक जीवन में कीर्ति अर्जित करता हुआ मृत्यु-उपरान्त ब्रम्हलीन होता है ।
  • लग्न में उच्च का गुरु चन्द्र को पूर्ण दृष्टि से देख रहा हो एवं अष्टमस्थान ग्रहों से रिक्त हो तो जातक जीवन में सैकडो धार्मिक कार्य करता है तथा प्रवल पुण्यात्मा एवं मृत्यु के उपरान्त सद्गति का अधिकारी होता है ।
  • अष्टम भाव में शनि देख रहा हो तथा अष्टम भाव में मकर या कुम्भ राशि गो तो जातक योगिराज पद प्राप्त करता है तथा विष्णुलोक प्राप्त करता है ।
  • यदि जन्मकुण्डलीं में 4 ग्रह उच्च के हो तो जातक निश्चय ही श्रेष्ट मृत्यु का वरण करता है एवं पीछे अक्षयकीर्ति वट स्थापित कर देता है ।
  • ११ भाव में सूर्य-बुध हो ९ वे भाव में शनि तथा 8 भाव में राहु हो तो जातक मृत्यु के पश्चात् मोक्ष प्राप्त करता है ।
  • विशेष योग
  • १२ वे भाव में शनि, राहु या केतु से युक्त हो, फिर अष्टमेश से युक्त हो अथवा षष्ठेश से दृष्ट हो तो मरने के बाद दुर्गति होगी यह समझना चाहिये ।
  • गुरु लग्न में हो, शुक्र ७वे में हो, कन्याराशी का चंद्रमा हो एएवं धनु लग्न में मेष का नवांश हो तो जातक मृत्यु के पश्चात् परमपद प्राप्त करता है ।
  • अष्टम भाव को गुरु, शुक्र और चन्द्र-तीनों ग्रह देखते हो तो जातक मृत्यु के पश्चात् श्रीकृष्ण के चरणों में स्थान प्राप्त करता है, ऐसा आर्यऋषियों का कथन है ।