आयु विचारआयु विचार

    • ८० से १२० वर्ष तक पूर्ण आयु कहलाता है ।
    • मध्य आयु ३५ से ६५ तक । 
    • जन्म से ३४ वर्ष तक अल्पायु ।
    • जन्म लग्न से अष्टम स्थान आयु का स्थान हैं ।
    • जन्म लग्न से तृतीय स्थान भी आयु स्थान कहलाता है ।
    • जन्म लग्न से दसमा स्थान भी आयु स्थान कहलाता है ।
    • 3,8,१० स्थान आयु स्थान है ।

    पूर्ण आयु विवरण(८० से १२० वर्ष)

    • आयु की वृद्धि में मदद करने वाले शनि के अष्टम स्थानों में रहने पार नैसगिर्क शुभ ग्रह गुरु, शुक्र, चन्द्र एवं बुध के केंद्र या त्रिकोण में रहने पार अष्टमाधिपति दस केंद्र या कोण में होने से पूर्णायु प्राप्त होगी ।
    • अष्टमाधिपति शनि लाभ स्थान में होने पर केंद्र एवं त्रिकोणमें शुभ ग्रह के होने से पूर्णायु प्राप्त होगी ।
    • गुरु अष्टमाधिपति के रूप में स्वक्षेत्र में, नैसगिर्क प्पप्ग्रह लाभस्थान में और नैसगिर्क शुभ ग्रह केंद्र में रहने से पूर्णायु प्राप्त होगी ।
    • रवि और शनि एकदाश स्थान में और नैसगिर्क शुभ ग्रह केंद्र में होने से पूर्णायु प्राप्त होगी ।
    • रवि के दुसरे और छठे स्थान में तथा एकादश स्थान में रहने पर पूर्णायु प्राप्त होगी । इसके अतिरिक्त नैसगिर्क शुभ ग्रह केंद्र तथा त्रिकोण में रहने पर और लाभ स्थान में सुभ ग्रहों के होने से पूर्णायु प्राप्त होगी ।
    • अष्टम स्थानाधिपति शनि के लाभ स्थान में रहने से और केंद्र में नैसगिर्क शुभ ग्रह केंद्र में होने से पूर्णायु प्राप्त होगी
    • लग्न, भाग्य, राज्याधिपति तीनो के स्वक्षेत्र में या उच्य स्थान में रहने से पूर्णायु प्राप्त होगी ।  नैसगिर्क शुभ ग्रह के लग्न, भाग्य, केंद्र में होने से पूर्णायु प्राप्त होगी ।

    मध्यम आयुयोग

    • अष्टमेश तथा लाभाधिपति नैसगिर्क शुभ ग्रह के भाग्य में या लाभस्थान में रहने से मध्यमायु प्राप्त होगी ।
    • लग्नाधिपतियों के परिवर्तन होने से एवं लग्न में नैसगिर्क सुभ ग्रहों के होने से मध्यमायु प्राप्त होगी ।
    • धनु लग्न के लिए अष्टमाधिपति चन्द्र के स्वक्षेत्र में रहने पर, शनि-बुध, शनि-केतु, शनि-गुरु, शनि-शुक्र, शनि-रवि या शनि-मंगल के लाभ स्थान में रहने पर मध्यमायु  प्राप्त होगी ।
    • केंद्र में सुभ ग्रह होने पर आयु के लिए जिम्मेदार शनि के ३, ६, स्थान में रहने पर मध्यमायु प्राप्त होगी ।
    •  राज्य में लग्नाधिपति तथा लाभ में अष्टमधिपति के रहने से स्थान में मध्यमायु प्राप्त होगी । अष्टमाधिपति नैसगिर्क शुभ ग्रहों के साथ मिलकर एकादश  स्थान में होने पर, रवि लाभ में तथा नैसगिर्क पाप ग्रह त्रिकोण में होने से मध्यमायु प्राप्त होगी ।

    अल्पायुयोग

    • केंद्र एवं कोण में एक भी नैसगिर्क सुभ ग्रहों के न होने से, नैसगिर्क पाप ग्रह केंद्र एवं त्रिकोण में होने से और चन्द्र के लाभ स्थान में रहने पर अल्पायु प्राप्त होगी ।
    • चन्द्र के नैसगिर्क पाप ग्रहों से मिलकर केंद्र में या कोण में रहने पर, बाकि ग्रह दुर्बल रहने पर अल्पायु प्राप्त होगी ।
    • केंद्र एवं त्रिकोण में नैसगिर्क पाप ग्रहों के होने पर और चन्द्र के षष्ठ या अष्टम में रहने पर अल्पायु प्राप्त होगी ।
    • लग्नाधिपति या अष्टमाधिपति चन्द्र के व्यय भाव में रहने पर, केंद्र एवं त्रिकोण में नैसगिर्क पाप ग्रहों के रहने पर अल्पायु प्राप्त होगी ।
    • नैसगिर्क सुभ ग्रहों के ३, ६, ८ तथा व्यय स्थान में रहने पर, नैसगिर्क पाप ग्रहों के साथ मिलने पर अल्पायु प्राप्त होगी ।