ज्योतिष में १२ राशियाँ है इनके आधार पर १२ लग्न होते है और इनके विविध योगो के आधार पर कुल २८८ प्रकार के कालसर्पयोग निर्मित हो सकते है ।
    प्रमुख रूप से भाव आधार इज कालसर्पयोग १२ प्रकार के होते है ।
    अनन्त कालसर्प योग –
    लग्न से ७वे भाव तक बनने वाले इस योग को अनन्त कालसर्पयोग कहा जाता है । इस योग के कारण जातक को मानसिक अशांति, जीवन की अस्थिरता, कपट बुधि, प्रतिष्ठाहानी, वैवाहिक जीवन का दुःखमय होना इत्यादी  प्रभाव देखने को मिलते है। जातक को आगे बढ़ने के लिये काफी संघर्ष करना पड़ता है ऐसा व्यक्ति निरंतर मानसिक रूप से अशांत रहता है ।
    कुलिक कालसर्प योग –
    ७वे भाव में मंगल होने पर जातक में बुधि की कमी रहती है, स्वास्थ दुर्बल रहता है, मिथुन या कन्या का मंगल होने पर दो विवाह होते है, पर दोनों के अनिष्ट की आशंका रहती है, अपने घर का (मेष या वृश्चिक) का मंगल या उच्च (मकर)का मंगल होने इज स्त्री सुख मिलता है तथा व्यापर में सफल रहता है, मकर या कुंभ का मंगल जातक को दुराचारी बनता है ।
    वासुकि कालसर्प योग –
    यह योग ३ से ९ तक बनता है । पारिवारिक विरोध, भाई-बहनों से मनमुटाव, मित्रो से धोखा,  भाग्य की प्रतिकुलता, व्यवसाय या नोकरी में रूकावटे, धर्म के प्रति नास्तिकता, कनुनी रूकावटे आदि बाते देखने को मिलती है । जातक धन अवश्य कमाता है, किन्तु कोई-न-कोई बदनामी उसके साथ जुडी ही रहती है । उसे यश, पद, प्रतिष्ठा पाने के लिए संघर्ष करना ही पड़ता है ।
    शंखपाल कालसर्प योग –
    यह योग 4से १० भाव में निर्मित होता है । इसके प्रभाव से व्यवसाय, नोंकरी, विद्या अध्यन इत्यादि पक्षो रूकावटे आती है । घाटेका सामना करना पड़ता है, वाहन एवमं कर्मचारियों को लेकर कोई न कोई समस्या हमेशा आती है । आर्थिक स्थिति इतनी अधिक ख़राब हो जाती है की दिवालिया होने तक की परिस्थिति आ सकती है ।
    पद्म कालसर्प योग –
    ५ से ११ भाव में राहु-केतु होने से यह योग होता है, इसके कारण संतान सुख में कमी या संतान दूर रहना अथवा विच्छेद तथा गुप्तरोग से जूझना पड़ता है, असध्यरोग हो सकते है, जिनकी चिकित्सा में अत्यधिक धनका अपव्यय होता है । दुर्घटना एवं हाथो में तकलीफ हो सकती है । मित्रों एवं पत्नी से विश्वासघात मिलता है, यदि सट्टा, लाटरी, जुआ की लत हो तो इसमे  सर्वश्व स्वाहा होने में देर नहीं लगती है, शिक्षा प्राप्ति में अनेक अवरोध आते है । जातक की शिक्षा भी अपूर्ण रह सकती है, उसी से धोखा मिलता है सुख में प्रयत्न करने पर भी इच्छित फलकी प्राप्ति नही हो पाती, संघर्ष पूर्ण जिओँ बीतता है ।
    महापद्म  कलसर्प योग –
    ६ से १२ भाव के इस योग में इस योग में पत्नी-विछोह, चरित्र गिरावट, शत्रुओ से निरन्तर प्रभाव आदि बाते होती है, यात्राओं की अधिकता रहती है, आत्मबल की गिराबट देखने को मिल जाती है । प्रयत्न करने पर भी बीमारी से छुटकारा नही मिलता, गुप्त शत्रु निरंतर षडयंत्र करते ही रहते है।
    तक्षक कालसर्प योग –
    ७ से लग्न यह योग होता है, इसमे सर्वाधिक प्रभाव वैवाहिक जीवन एवं सम्पति के स्थायित्वपर पड़ता है, और असाध्य रोगों से जूझना पड़ता है, पदोन्नति में निरंतर अवरोध आते है । मानसिक परेशानिका कोई-न-कोई कारण उपस्थित होता रहता है ।
    ककोर्टक कालसर्प योग –
    8 भाव से २ भाव तक ककोर्टकयोग होता है, जातक रोग और दुर्घटना से कष्ट उठाता है, ऊपरी बाधाये भी आती है, अर्थहानि से व्यापार में नुकसान से नौकरी में परेशानी, अधिकारियों से मनमुटाव, पदावनति, मित्रो से हानि एवं साझेदारी में धोखा, मिलता है, रोगों की अधिकता शल्यक्रिया जहर का प्रकोप एवं अकाल मृत्यु आदि योग बनते है ।
    शंखनाद कालसर्प योग –
    यह योग ९ से 3 भाव तक निर्मित होता है है, यह योग भाग्य को दूषित करता है, व्यापत में हानी एवं पारिवारिक तथा अधिकारियो से मनमुटाव करता है, फलत: शासन से कार्यो अवरोध होते है, जातक के सुख में कमी देखने को मिलती है ।
    पातक  कलसर्प योग –
    १० से 4 भाव तक यह योग बनता है, १० भाव से व्यवसाय की जानकारी मिलती है, संतान पक्षों को बीमारी भी होती है, १० एवं 4 माता-पिता, का अध्ययन किया जाता है, अत: माता-पिता, दादा-दादी वियोग राहु की महादशा में सम्भाव्या है ।
    विशाक्त कालसर्प योग –
    राहु-केतु के ११-५ में स्थित होने पर इस योग से नेत्र पीड़ा, ह्रदयरोग, वन्धुविरोध, अनिंद्रारोग आदि स्थितियां बनती है, जातक को जन्म स्थान से दूर रहने को वाध्य होना पड़ता है, किसी लम्बी बीमारी की संभाबना रहती है ।
    शेषनाग  कलसर्प योग –
    १२ से ६ भाब के इस योग में जातक के गुप्त शत्रुओं की अधिकता तो होती है साथ ही वे जातक को निरंतर नुकसान भी पहुचाते रहते है, जिन्दगी में बदनामी अधिक होती है, नेत्र की शल्यक्रिया करवानी पड़ सकती है, कोर्ट-कचहरी के मामलो में पराजय मिलती है ।