जन्मपूर्व योनी-विचार

    • यदि जातक की जन्म-कुण्डलीं में ४ या इससे अधिक ग्रह उच्च राशि के अथवा स्वराशि के हों तो जीवन उत्तम योनी भोगकर यहाँ जन्म लिया है, ऐसा समझना चाहिये |
    • लग्न में उच्च-राशि या स्वराशि का चंद्रमा हो तो बलाक पूर्व जन्म में सद्विवेक वर्णिक था, यों मानना चाहिये |
    • लग्नस्थ गुरु इस बात का सुचक है, की बालक पूर्व जन्म में वेदपाठी ब्राह्मण था I यदि जन्म-कुण्डलीं में कही भी उच्च का गुरु होकर लग्न को देख रहा हो तो बालक पूर्व जन्म में धर्मात्मा, सद्गुणी एवं विवेकशील साधु अथवा तपस्वी था-ऐसा ऋषियों का कथन है |
    • यदि जन्म-कुण्डलीं में सूर्य ६,८ वे या १२ भाव में हो अथवा तुला राशि का हो तो बालक पूर्वजन्म में पापरत एवं भ्रष्टजीवन व्यतीत करने वाला था-यह समझना चाहिये |
    • लग्न या ७ वे भाव में यदि शुक्र हो तो जातक पूर्वजन्म में राजा या प्रसिद्ध सेठ था तथा पूर्णतः भोगी जीवन बितानेवाला था-यह समझना चाहिये |
    • लग्न ११, ७ या ४  वे भाव में यदि शनि इस बात का सूचक है की बालक पूर्वजन्म में शूद्रपरिवार से संबंधित था एवं पापपूर्ण कार्यो में रत था, यह समझना चाहिये |
    • यदि लग्न या ७ वे भाव में यदि राहु हो तो बालक की पूर्वमृत्यु स्वाभाविक रूप में नहीं समझना चाहिये |
    • या इससे अधिक ग्रह जन्मकुण्डली में नीच राशि के हो तो बालक ने पूर्वजन्म में निश्चय ही आत्महत्या की होगी, ऐसा ऋषियों का कथन है |
    • लग्नस्थ बुध स्पष्ट करता है की जातक पूर्वजन्म में वाणिक-पुत्र था एवं विविध क्लेशों से ग्रस्त रहता था |
    • ७,६ १० भाव में यदि मंगल की उपस्थिति हो तो जातक पूर्वजन्म में अत्यंत क्रोधी स्वभाव था तथा कई व्यक्ति उससे पीड़ित रहते थे |
    • गुरु, सुभ ग्रहों से द्रिस्ट हो तथा गुरु ५, ९ वे भाव में हो तो जातक पूर्वजन्म में वीतरागी था-यों समझना चाहिये |
    • ११ में सूर्य, ५ में गुरु तथा १२ भाव में शुक्र इस बात का धोतक है की जातक पूर्वजन्म में धर्मात्मा, लोगों की सहायता करने वाला तथा दान-पुण्य में तत्पर ईस्वराराधक था, ऐसा ऋषियों का कथन है |