इस सांसार में प्रत्येक प्राणी को रोग, दु:ख, दरिद्रता, वेमनस्यता, राजयोग, उच्य पद इत्यादि नवग्रहों के प्रभाव से प्रभव से प्राप्त होता है। जैसे :

    सूर्य ग्रह के प्रभाव

    शुभ प्रभाव:
    जातक को राज्य, अरोग्यता, राजनैतिक पद, शासन, जीवन शक्ति, महत्वाकांक्षा, राजसी वैभव, आत्मज्ञान, मन की पवित्रता और शिवोपासना की प्रेरणा देता है।

    अशुभ प्रभाव:
    अगर सूर्य ग्रह अशुभ हो तो जातक को स्त्री, पुत्रादि से दुःख, घर क्लेश धन व्यय, अशान्तचित्त, प्रियजनो से विरोध कार्यो में बाधा आदि कष्ट होता हैं। शारीरिक विकार में सिर पीड़, ज्वर नेत्र विकार, पित्त मूर्छा, चक्कर आना, लू लगना, हृदय रोग, अतिसार, हडियों का टूटना, विषजन्य विकार अग्नि से जलना, पशु एवं शत्रु भय होता है। वाणी में दोष, मुख के रोग, राजदंण्ड, सिध्र पंतन का रोग, उदर विकार, गुप्त रोग, बिजली गिरना आदि होता है। कोध, करकर्म, अन्धत्व, शिव एवं भूत आदि के कोप से रोग होता है।

    शान्ति का उपाय:
    सूर्य ग्रह शांति स्नानौषधि से स्नान करना। सूर्य नक्षत्र औषधि से हवन करना एवं सेवन करना । सूर्य मंत्र से संम्पुटित महामृत्यंजय, आदित्यह्रदय का पाठ करना, सूर्य अर्घ एवं दान करना।

    चन्द्र ग्रह के प्रभाव

    शुभ प्रभाव:
    चन्द्र ग्रह अगर शुभ हो तो जातक को सुगन्ध, पुष्प, बुद्धि, मन और मस्तिष्क की सुदृढ़ता मानसिक भाव एवं संरचरना, रूप-लावण्य, कान्ति, वस्त्रभूषण, वाणी में मधुरता की और अग्रसर करता है।

    अशुभ प्रभाव:
    यह ग्रह अशुभ हो तो जातक को दुर्बलता, दरिद्रता, क्षीण मानसिकताए स्वार्थीपान, कृतघ्नता, अभिमानी, रहस्यमय, व्याकुल चित्त, विधाहीनता, कृपणता, वाहन, मकान एवं सुख के साधनों में बाधक होता है। माता-पिता से मनमुटाव, दाम्पत्य जीवन में कलह, प्रगति में बाधा उत्पन करता है। इस ग्रह से शिरोरोग, श्वास रोग, कफ और गुप्त और मिर्गी, क्षय रोग, निमोनिया, प्रमेह, मूत्रकृच्छ पाण्डू स्त्रीयों का उदर रोग, हिस्टीरिया, कालिका देवियों से प्रकोप श्वास- कांस, नेत्र विकार, हकलाहट, फेफड़ो की समस्या, जल से आधात एवं जल रोग, केल्शियम की विशेष कमी हो जाती है।

    शान्ति का उपाय:
    चन्द्र ग्रह शान्ति स्नानौषधि से स्नान करना चाहिए । चन्द्र नक्षत्रों औषधियों से हवन एवं सेवन करना चाहिए । चन्द्र ग्रह का दान, मंत्र जाप, काली उपासना या काली मंत्र का जाप, चण्डी महायज्ञ इत्यादि करना चाहिए।

    मंगल ग्रह के प्रभाव

    शुभ प्रभाव:
    मंगल ग्रह के शुभ होने पर पराक्रम, युद्ध विजय, बलीष्टता, अधिकार भावना, धैर्य, पौरूष शक्ति, महत्वाकांक्षा कार्य निपुणता, स्वतन्त्रता, भूमि और बाग प्रदान करता है। सेनानायक, मंत्री, सेनापति सर्जन, होता है।

    अशुभ प्रभाव:
    मंगल ग्रह के अशुभ होने पर जातक को कूरता, हिंसक भावना, निर्दयता, मिथ्याभाषी, विश्वासधाती, परस्त्रीगमन, द्वेष-विवाद, मानसिक संताप, व्याभिचार, पत्नी नाश, वाहन आदि सुखों में बाधा उत्पन करता है।

    इस ग्रह से शारीरिक विकार में पित्त सम्बंधी रोग, नेत्र विकार, मज्जा विकार, दाह, कुण्ठ, मृर्गी, उन्माद, चर्म रोग, मुख एवं कान रोग, गुप्त रोग उदर रोग, रक्त विकार, गर्भपात इत्यादि उत्पंन करता है। पेट दर्द, वातशूल, सन्धि वात, गण्ड माला, हृदय रोग, घाव, हड्डी टूटना, दुर्घटना, चोट, चेचक, भूत-पिशाच, गंधर्व आवेश, भैरव के प्रकोप, लोहा, अग्नि से भय, चोर भय, गृह, भूमि, भवन, वाहन सुखों में बाधा, प्राण भय, मयावी, गंजापन आदि। डकैत, हत्यारा, तस्कर, जुआरी की प्रवृत्ति उत्पंन करता है।

    शान्ति का उपाय:
    मंगल ग्रह शान्ति स्नानौषधि से स्नान । मंगल नक्षत्र औषधियों से हवन एंव सेवन, मंगल, मंत्र का जाप व दान। भैरव पूजा, अघोर मंत्रों से हवन एवं महारूद्र यज्ञ कराने से मंगल ग्रह का दुष्प्रभाव से मनुष्य बच जाता है।

    बुध ग्रह के प्रभाव

    शुभ प्रभाव:
    यह ग्रह शुभ हो तो जातक को विद्वान, बुद्धिमान, गणितज्ञ, कलाओं में निपुणता, भाषण चार्तुयता, बंधुता, शिल्प चमत्कार की प्रेरणा देता है। बड़ा व्यापारी, लेखन, वकालत, और बुध को काल पुरूष की वाणी कहा गया है।

    अशुभ प्रभाव:
    बुध ग्रह के अशुभ होने पर सर्वप्रथम स्नायु मंडल एवं बुद्धि को प्रभावित करता है। स्मरण शक्ति का हास, तन्द्रा, आलस्य, सिर में चक्कर आना, शूल रोग, गुप्त रोग, वायु और उदर सम्बंधी रोग, मन्दाग्नि, चर्मरोग, गण्डमाला, मानसिक कष्ट, त्रिदोषजन्य रोग, स्त्रियों के लिए पति कष्ट एवं वैधत्य भय होता है। वाणिज्य नाश, नंपसुकता, वात-पित्त, कप, धनोपार्जन में बाधा, न्यायालय से दण्ड, तस्कर प्रवृत्ति, व्यापारिक अड़चने आदि उत्पन करता है।

    शान्ति का उपाय:
    बुध ग्रह शान्ति स्नानौषधि से स्नान। बुध नक्षत्रों औषधि से हवन एवं सेवन, बुध मंत्र का जाप व दान करना चाहिए। यक्ष पूजा, महारूद्र यज्ञ कराने से बुध ग्रह का दुष्प्रभाव समाप्त हो जाता है।

    गुरू ग्रह के प्रभाव

    शुभ प्रभाव:
    गुरू ग्रह के शुभ होने पर जातक को चिन्तन, मननशीलता, श्रेष्ठमति, पुष्ट शरीर, विद्वता, मांगलिक कार्य, वाहन सुख, राज्य सम्मान, गुरू-भक्ति, प्रवचन क्षमता, ग्रंथ लेखन, उपासना, स्नेह शीलता स्वर्ण, सदगति एवं सौभाग्य प्रदान करता है। सर्वशास्त्राधिकारी ज्ञान शिक्षा, जप-तप, धर्म न्यायाधीश, प्रध्यापक ज्योतिषी, वैदांती, महाविद्वान होता है।

    अशुभ प्रभाव:
    इस ग्रह के अशुभ होने पर दुर्बुद्धि, शोक, मोह, गुरू, देवता के प्रति अनादर, शारीरिक दुर्वलता, अशुभ वार्तालाप, ठगवृन्ति, मध्यपान, व्याभिचार प्रियजनों से कलह, पुत्र शोक, शत्रु शोक, शत्रु पीड़ा प्रदान करता है। इसके दुष्प्रभाव से शारीरिक विकार में वायु रोग, आंतों का ज्वर, ऑत उतरना (हार्निया) सुजन, उदरशूल, यकृत रोग, कामला, कफ, विधाहीनता, पढ़ने-लिखने में बाधासन्तान दुराचारी, मांगलिक कार्यो में बाधा, विवाह में बाधा, पदोन्नति में बाधा उत्पंन करता है।

    शान्ति का उपाय:
    गुरू ग्रह शान्ति स्नानौषधि से स्नान। गुरू नक्षत्रों औषधि से हवन एवं सेवन, गुरू मंत्र का जाप एवं दान, गाय दान, विष्णु महायज्ञ, महारूद्र यज्ञ कराने से इसका दुष्प्रभाव समाप्त हो जाता है।

    शुक्र ग्रह के प्रभाव

    शुभ प्रभाव:
    इस ग्रह के शुभ होने पर जातक को सौन्दर्य, कोमलता, संगीत साहित्य, काव्य-कला निपुणता, कीड़ा, विवाह, वाहन वस्त्राभूषण, निधि, सुगंधि, पुष्प प्रसाधन, नवीन सुसज्जित गृह, एश्वर्य, वैभव, प्रेम प्रसंग, आनंद, सुख, काम पुरूष प्रदान करता है।

    अशुभ प्रभाव:
    शुक्र ग्रह के अशुभ होने पर शारीरिक दुर्बलता, अधिक स्त्री प्रसंग से उत्पन प्रमेह, गुप्त रोग, कफ, वाता, नेत्र ज्वर, काम ज्वर, पांण्डु एवं सुख रोग, वीर्यस्त्राव, नपुंसकता, मूत्रावरोध, काम सुख में बाधा स्त्रीनाश, प्रियजनों से कलह, स्त्रियों से भय, प्रबल व्याभिचार, पत्नी से प्रेमभाव, परिवारिक सुख में बाधा, वाणी की कर्कशता हकलाहट,बौद्धिक जड़ता, शिक्षा में बाधा, कुछ परिस्थितियों में सन्तानभाव इत्यादि उत्पंन करता है।

    शान्ति का उपाय:
    शुक ग्रह शान्ति स्नानौषधि से स्नान। हवन सेवन, शुक ग्रह का दान, मंत्र का जप, महारूद्र यज्ञ, दुर्गापाठ, सहस्त्रचण्डी महायज्ञ कराने से इसका दुष्प्रभाव समाप्त हो जाता है।

    शनि ग्रह के प्रभाव

    शुभ प्रभाव:
    शनि ग्रह शुभ हो तो जातक को राज्य, सुख, अपार धन, बृहद व्यापार, मान-सम्मान तथा यश और अत्तम स्वास्थ देता है।

    अशुभ प्रभाव:
    शनि ग्रह अशुभ हो तो जातक को झूठा कलंक, शत्रुता की वृद्धि, दरिद्रता, मित्रों से वैमनस्य, बौद्धिक शक्ति डावाडोल, दुष्टजनों के संसर्ग से धन का नाश होता है। स्त्री व संतान रोगी हो जाती है। व्यापार व वाहन नष्ट हो जाता उत्पन करता है- जैसे :- शूल रोग, वायु-स्नानयु तीव्र ज्वर, सिर पीडा जोडों का दर्द, अतिसार, स्त्री के गुप्त रोग एवं रूधिर विकार, विषजन्य प्रभाव व मृत्यु तुल्य कष्ट देता है।

    शान्ति का उपाय:
    शनि ग्रह की शान्ति के लिए शनि ग्रह शान्ति औषधि से स्नान कराने/करने से चमत्कारी लाभ प्राप्त होता है।

    राहु ग्रह के प्रभाव

    प्रभाव:
    राहु का छाया ग्रह होने के साथ-साथ तामसिक एवं महापापी ग्रह है। भौतिक साधनों की किसी भी मूल्य पर प्राप्ति, लालसा इसका स्वाभाव हैं, जिसके लिए यह निकृष्ट साधन अपना सकता है। ज्योतिषमर्मज्ञों ने फलित में सदा इससे सतर्क रहने का संदेश दिया है। जन्मांग में अच्छा होने पर भी चौथाई दोष अवश्य होता है। अतः इस ग्रह की दशा में मानव मात्र को हानि होती है।

    यह सदा वकी रहता है, अर्थात उल्टा चलता है। इसका प्रधान देवता काल व अधिदेवता सर्प है। मूढ़, कुतर्क, दुष्ट, स्त्रीगमन, नीचजनों का आश्रय, गुप्त और षडयन्त्रकारी कार्य, धोखेबाजी, जुआ, रिश्वत लेना, गुप्त पाप कर्म, विषम स्थान भ्रमण आकस्मिक आपत्तियों का कारक राहु की है।

    इस ग्रह से होने शारीरिक विकार में वायु विकार, मिर्गी, चेचक, कोढ़, हकलाहट, देहताप पुराने जटिल रोग, चर्म रोग, विष विकार, पैरों में रोग, महामारी, सर्पदश अशुभ बुद्धि, फोड़े उत्पंन करता है।

    शान्ति का उपाय:
    राहु ग्रह की शान्ति के लिए महारूद्र यज्ञ कराने से चमत्कृत लाभ प्राप्त होता है।

    केतु ग्रह के प्रभाव

    शुभ प्रभाव:
    केतु ग्रह शुभ होने पर जातक को ज्ञान, विज्ञान, आत्मज्ञान, तपश्चर्या, तप, मोक्ष तथा उत्कृष्टता की चरमसीमा लॉध जाता है।

    अशुभ प्रभाव:
    इस ग्रह की अशुभावस्था में आकास्मिक बाधाएँ और विपत्ति, दुर्भिक्षता, बंधन, दरिद्रता, शारिरीक व मानसिक मलिनता, प्रेत-पिशाच, अभिचार जन्य पीड़ा, शत्रु से पीड़ा, अपमृत्यु आदि कष्ट मिलता है। अगर यह पाप ग्रह के साथ हो तो आत्महत्या की प्रेरणा देता हैं, बना हुआ काम बिगाड़ देता है। अप्रत्याशित परिस्थितियाँ उत्पंन करता है। इससे होने वाले शारीरिक विकार में क्षय रोग, फोड़े-फुन्सियाँ, खुजली, चेचक, जहरीले कीड़े के दंश, कृमि रोग, हृदय रोग, बधिरता उत्पना करता है। कमर में पीड़ा, वात रोग, मुंख रोग, विष बाधा, बन्ध्या योग, दांत के रोग, श्वेत कुष्ठ, धातु विकार बवासीर और टी० बी० होती है।

    शान्ति का उपाय:
    केतु ग्रह शान्ति स्नानौषधि से स्नान। हवन एवं सेवन, दान, केतु मंत्र का जाप, महारूद्र यज्ञ, रूद्र पूजा कराने से इसका दुष्प्रभाव समाप्त हो जाता है।