स्त्री या पुरूष के पूर्वजन्मों का किया हुआ पुण्य अथवा पाप तज्जन्य ही सुख-दुःख इस जन्म में भोगना पड़ता है। यह बात सिद्ध है, कि किये हुये कर्मो का ही फल जीवों को भोगना पड़ता है। वही कर्म सूचक ग्रह इस जन्म में जन्म लग्न से इष्ट अथवा अनिष्ट स्थान में बैठकर शुभाशुभ फल देते है। स्त्रियों का जो शुभाशुभ फल है, वह पुरूष को भी साथ-साथ भोगना पड़ता है, अतः विवाह के समय में कन्या और वर के ग्रह अवश्य विचारणीय है, ऋषियों का कहना हैं कि कन्याओं की जन्म कुडंली में सुख-दुख देनेवाले, संन्तान संम्भव-असम्भव योग करने वाले, सौभाग्य तथा वैधव्य योग करने वाले ग्रह बैठ जाते हैं। उसका फल विवाह के बाद पति को भी अवश्य भोगना पड़ता हैं। अतः पूर्ण विचार करने वाले ज्योतिषियों के पास जाकर कुंडली को विचार कर जिस कन्या की कुंडली में विष कन्या दोष , वैधव्ययोग, बन्ध्या योग, मृतवत्सादि योग और अनपत्य दोष हो तो विधिपूर्वक सावित्री व्रत को कराकर शुभ समय में विष्णु मुर्ति व शालीग्राम व कुंभ विवाह व बट-वृक्ष आदि से विवाह कराके महामृत्युंजय या महारूद्र यज्ञ करा देने से सर्व दोषों का निवारण हो जाता है।

    विष कन्या योग-
    यदि शनिवार, आश्लेषा नक्षत्र द्धितीया तिथि हो, भौमवार, सप्तमी और सतभिषा नक्षत्र हों, यह दो ऐसे ही रविवार, द्वादशी विशाखा नक्षत्र, यह तीन ऐसे इन तीनों योगों में किसी कन्या का जन्म हो तो विष- कन्या होती है, वा जिसके जन्म से नवम मंगल, शनि लग्न में और सूर्य पंचम स्थान में हो वह कुमारी विष-कन्या होती है।

    वैधव्य योग-
    जिस स्त्री के जन्म समय में चन्द्रमा से सातवें घर में मंगल, शनि, राहु और सूर्य बैठे हों तो वह अवश्य विधवा हो जाती हैं, अथवा लग्न छठ, आठवें और सातवें घर में उक्त ग्रह बैठे हो तो वह स्त्री विधवा हो जाती है।
    जिस कुमारी के जन्म समय में पाप ग्रहों से दृष्ट युक्त सप्तमेंश आठवें घर में बैठा हो और अष्टमेंश भी पाप दृष्ट युक्त सातवें घर में बैठा हो तो वह कन्या अवश्य बालबैधव्य को प्राप्त हो जाती है।
    जिस कन्या के जन्म समय में पापग्रहों से पीड़ित होकर सप्तमेंश और अष्टमेंश छठे अथवा आठवें घर में बैठे हो तो वह कन्या विधवा हो जाती है।

    विवाह समय व वर्ष
    सप्तमेश शुभग्रह की राशि में हो शुक अपने उच्च या अपनी राशि में हो तो सोलहवें और 19 वे वर्ष में विवाह होता है।
    सप्तम भाव में सूर्य हो, सप्तमेश शुक से युत हो तो प्रायः 21वें या 22वें वर्ष में विवाह होता हैं। अष्टम भाव से सातवें शुक हो और सप्तमेश मंगल से युत हो तो 22वें वर्ष या 27वें वर्ष में विवाह होता है! सप्तम भाव के नवांश में लग्नेश हो और सप्तमेश बारहवें भाव में हो तो 23वें और 26वें वर्ष में विवाह होता है।
    अष्टम भाव की नवांश राशि सातवें भाव में हो और लग्न के नवांश में शुक युत हो तो 24में या 33वें वर्ष में विवाह होता है।
    भाग्यस्थान से भाग्यभाव में शुक हो उससे 12वें भाव में राहु हो तो 31वें वर्ष व 33वें वर्ष में विवाह होता है।