राशियों में अश्विनी नक्षत्र की स्थिति 0.00 अंशों से 13.20 अंशों तक मानी गयी है।

अश्विनी के भारतीय ज्योतिष शास्त्र में पर्यायवाची नाम हैं, तुरंग, दस एवं हृय।

यूनानी अथवा ग्रीक उसे ‘कैस्टर-पोलक्स' कहते हैं, जबकि अरबी में 'अश शरातन'। चीनी इस नक्षत्र को 'लियू कहते हैं।

अश्विनी नक्षत्र में तारों की संख्या में मतभेद है। यूनानी, अरबी उसमें दो तारों की स्थिति मानते हैं, जबकि भारतीय ज्योतिष के अनुसार तीन तारों को मिलाकर इस नक्षत्र की रचना की गयी है।

अश्विनी की आकृति अश्व अथवा घोड़े के समान कल्पित की गयी, इसीलिए इस नक्षत्र को यह नाम दिया गया। यों बाद में इनका संबंध देवगण के वैद्य द्वय अश्विनी कुमारों से भी जोड़ दिया गया। अश्विनी नक्षत्र से एक पौराणिक कथा भी जुड़ी हुई है, उसकी आगे चर्चा !

सर्वप्रथम अश्विनी नक्षत्र का ज्योतिषीय परिचयः

अश्विनी नक्षत्र के देवता हैं-अश्विनी कुमार, जबकि स्वामी केतु माना गया है। (केवल पिंशोतरी दशा में)

गण: देव, योनिः अश्व एवं नाड़ी: आदि है। नक्षत्र के चरणाक्षर हैं-चू, चे, चो, ला।। यह नक्षत्र प्रथम राशि मेष का प्रथम नक्षत्र है।

(मेष राशि में अन्य नक्षत्र हैं- भरणी के चारों चरण एवम् कृतिका के एक चरण) यह गंडमूल नक्षत्र कहलाता है।

अश्विनी नक्षत्र से जुड़ी हुई कुछ कथाएं भी हैं। एक कथा के अनुसार सृष्टि के प्रारंभ में ब्रह्मा ने स्वयं को बहुत एकाकी पाया। अपने इसी एकाकीपन को दूर करने के लिए उन्होंने देवों की रचना की। ब्रह्मा द्वारा जिस सर्वप्रथम देव की रचना की गयी, वही अश्विनी है, जिसके दो हाथ हैं।

एक अन्य कथा सूर्य को अश्विनी का पिता मानती है। सूर्य की पत्नी का नाम संज्ञा था। सूर्य की किरणों का ताप न सह सकने के कारण वह भाग कर आर्कटिक प्रदेश में जाकर एक मादा-अश्य के रूप में विचरने लगी। सूर्य ने भी एक अश्व का रूप धर कर संज्ञा का पीछा किया। संज्ञा उसे आर्कटिक प्रदेश में मिली। यहीं दोनों के संयोग से अश्विनी कुमारों का जन्म हुआ। यही अश्विनी कुमार बाद में देवताओं के वैद्य बने।

यह कथा इस एक ज्योतिषीय धारणा को भी पुष्ट करती है कि सृष्टि के प्रारंभ में अपने अक्ष पर घूमती पृथ्वी पर सूर्य किरणें धुवों तक पहुँचा करती। उस समय वसंत संपात अश्विनी नक्षत्र में था। उसी समय पृथ्वी पर जीवन का भी प्रारंभ हुआ।

अश्विनी नक्षत्र में जन्मे जातक/जातिका

अश्विनी नक्षत्र को समूची मेष राशि का प्रतिनिधित्व करने वाला नक्षत्र माना गया है। मेष राशि का स्वामित्व मंगल को दिया गया है। 'जातक पारिजात में कहा गया हैअश्विन्यामति बुद्धिवित विनय प्रज्ञा यशस्वी सुखी अर्थात् अश्विनी नक्षत्र में जन्म लेने का फल है : अति बुद्धिमान, धनी, विनयान्वित, अति प्रज्ञा वाला यशस्वी और सुखी।

इसकी व्याख्या करते हुए स्व. पं. गोपेश कुमार ओझा लिखते हैं-'अति प्रारंभ में आया है, इस कारण 'अति' सब विशेषणों के पहले अतिधनी भी जुड़ सकता है। मूल में प्रज्ञा यशस्वी शब्द आया है, जिसके दो अर्थ हो सकते हैं-1, प्रज्ञावान तथा यशस्वी, 2. अपनी प्रज्ञा के कारण यशस्वी (और अर्थान्तर में सुखी भी)। बुद्धि और प्रज्ञा साधारणतः एक ही अर्थ में प्रयुक्त होते हैं परंतु यहाँ ग्रंथकार ने बुद्धि और प्रज्ञा दोनों शब्दों का प्रयोग किया है। बुद्धि की परिभाषा है, संकल्प-विकल्पात्मक मन विश्लयात्मकं बुद्धिः। प्रज्ञा का अर्थ होगा प्रकृष्ट-ज्ञा नीतिज्ञ में प्रज्ञा विशेष मात्रा में होती है।

अश्विनी नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातकों का व्यक्तित्व सुंदर, माथा चौड़ा, नासिका कुछ बड़ी तथा नेत्र बड़े एवं चमकीलें होते हैं।

यद्यपि ऐसे जातक प्रत्यक्ष में बेहद शांत और संयत दिखायी देते हैं तथापि अपने निर्णय से कभी वे टस से मस नहीं होते। इसका कारण यह है कि वे कोई भी निर्णय जल्दबाजी में नहीं करते। वे उसके हर अच्छे-बुरे पहलू पर विचार करने के बाद ही निर्णय करते हैं। इसीलिए एक बार निर्णय करने पर वे उससे पीछे नहीं हटते।

अपने निर्णयों में वे किसी से प्रभावित भी नहीं होते। फलतः उन्हें हठी भी मान लिया जाता है। ऐसे जातकों के बारे में कहा गया है कि यमराज भी उन्हें अपने निर्णय से नहीं डिगा सकते।

लेकिन वे व्यवहार-कुशल भी होते हैं तथा अपना इच्छित कार्य इस खूबी से करते हैं कि न तो किसी को पता चलता है, न महसूस होता है।

अश्विनी नक्षत्र में जन्मे जातक ‘यारों के यार अर्थात् श्रेष्ठ मित्र सिद्ध होते हैं। उनकी मानसिकता समझने में समर्थ लोगों के लिए वे सर्वोत्तम मित्र ही सिद्ध होते हैं। इस नक्षत्र में जन्मे जातक जिन्हें चाहते हैं, उनके लिए वे सर्वस्व होम देने के लिए भी तत्पर रहते हैं। यही नहीं, ये किसी को पीड़ित देखकर उसे सांत्वना बंधाने में भी आगे होते हैं।

ऐसे जातकों के चरित्र की एक विशेषता यह होती है कि यद्यपि वे घोर से घोर संकट के समय भी अपार धैर्य का परिचय देते हैं तथापि यदि किसी कारणवश उन्हें क्रोध आ जाए तो फिर उन्हें संभालना मुश्किल होता है।

इसी तरह एक ओर वे अतिशय बुद्धिमान होते हैं तो दूसरी ओर कभी-कभी "तिल' का भी 'लाड़' बना देते हैं, अर्थात् छोटी-छोटी बातों को तूल देने लगते हैं। फलतः उनका मन भी अशांत हो उठता है।

वे ईश्वर पर आस्था रखते हैं लेकिन धार्मिक पाखंड को रंचमात्र भी नहीं पसंद करते। परंपराप्रिय होते हुए भी उन्हें आधुनिकता से कोई बैर नहीं होता।

वे स्वच्छताप्रिय भी होते हैं तथा अपने आसपास हर वस्तु को करीने से रखना उनकी आदत होती है।

शिक्षा एवं आयः अश्विनी नक्षत्र में जन्मे जातकों को हरफन मौला' कहा जा सकता है अर्थात् सभी बातों में उनकी कुछ न कुछ पैठ होती है। शिक्षा के क्षेत्र में उन्हें पर्याप्त सफलता मिलती है। वे चिकित्सा, सुरक्षा एवं इंजीनियरिंग क्षेत्रों में जा सकते हैं। साहित्य एवं संगीत के प्रति उन्हें खासा . गाव होता है। उनकी आय के साधन भी पर्याप्त होते हैं पर प्रदर्शन-प्रियता पर व्यय के कारण वे अभाव भी अनुभव करते हैं। कहा गया है कि अश्विनी नक्षत्र में जातकों को तीस वर्ष की अवस्था तक पर्याप्त संघर्ष करना पड़ता है। कभी-कभी उनके छोटे-छोटे काम भी रुक जाते हैं।

ऐसे जातक अपने परिवार को बेहद प्यार करते हैं। लेकिन कहा गया है कि ऐसे जातकों को पिता से न पर्याप्त प्यार मिलता है, न कोई सहायता। हाँ, मातृपक्ष के लोग उसकी सहायता के लिए तत्पर होते हैं। उन्हें परिवार से बाहर के लोगों से भी पर्याप्त सहायता मिलती है।

ऐसे जातकों का वैवाहिक जीवन प्रायः सुखी होता है। आम तौर पर सताइस से तीस वर्ष के मध्य उनके विवाह का योग बनता है। इसी तरह पुत्रियों की अपेक्षा पुत्र अधिक होने का भी योग बताया गया है।

अश्विनी नक्षत्र के विभिन्न चरणों के स्वामी इस प्रकार हैं-

प्रथम : मंगल, द्वितीय : शुक्र, तृतीय : बुध और चतुर्थ : चंद्रमा।

अश्विनी नक्षत्र में जन्मी जातिकाएं

अश्विनी नक्षत्र में जन्मी जातिकाओं में प्रायः उपरोक्त चारित्रिक विशेषताएं होती हैं। अश्विनी नक्षत्र में जन्मी जातिकाओं के व्यक्तित्व में एक चुम्बकीय आकर्षण होता है। जातकों की तुलना में उनके नेत्र मीन की भांति छोटे एवं चमकीले होते हैं।

अश्विनी नक्षत्र में जातिकाएं धैर्यवान, शुद्ध हृदय और मीठी वाणी की धनी होती हैं। वे परंपराप्रिय, बड़ों का आदर करने वाली तथा विनम्र भी होती हैं। ऐसी जातिकाओं में काम भावना कुछ प्रबल पायी जाती है।

ऐसी जातिकाएं यदि अच्छी शिक्षा पा जाएं तो वे एक कुशल प्रशासक भी बन सकती हैं। लेकिन वे परिवार के लिए अपनी नौकरी त्यागने में भी नहीं हिचकतीं। परिवार का कल्याण, उसका सुख ही उनकी प्राथमिकता होती है।

विवाहः कहा गया है कि ऐसी जातिकाओं का विवाह तेइस वर्ष के बाद ही करना चाहिए अन्यथा दीर्घ अवधि के लिए पति से विछोह, या तलाक अथवा पति के चिरवियोग के भी फल बताये गये हैं।

संतानः ऐसी जातिकाओं को पुत्रों की अपेक्षा पुत्रिया अधिक होती हैं। वे अपनी संतान का पर्याप्त श्रेष्ठ रीति से पालन-पोषण करती हैं। . एक फल यह कहा गया है कि यदि अश्विनी के चतुर्थ चरण में स्थित शुक्र पर चंद्रमा की दृष्टि पडे अर्थात चंद्रमा तुला राशि में हो तो संतानें तो अधिक होती हैं, पर बच कम पाती हैं।

स्वास्थ्यः ऐसी जातिकाओं का स्वास्थ्य प्रायः ठीक ही रहता है। जो भीव्याधियां होती हैं. वे अनावश्यक चिंता एवं मानसिक अशाति के कारण। ऐसी स्थिति निरंतर बनी रहने पर मस्तिष्क विकार की भी आशंका प्रबल रहती है।

ऐसी जातिकाओं को रसोईघर में भोजन बनाते वक्त आग से कुछ ज्यादा सावधान रहने की चेतावनी भी दी जाती है। वे शीघ्र ही दुर्घटनाग्रस्त भी हो सकती हैं।

अश्विनी नक्षत्र में विभिन्न ग्रहों की स्थिति के फल

अश्विनी नक्षत्र में स्थित होकर ग्रह कैसा फल देते हैं, जातक/जातिका के जीवन पर कैसा प्रभाव डालते हैं, यहाँ प्रस्तुत है, इसका विवरण।

सर्वप्रथम अश्विनी नक्षत्र के विभिन्न चरणों के स्वामीः

प्रथम चरण: मंगल, द्वितीय चरण : शुक्र, तृतीय चरण: बुध एवं चतुर्थ चरण: चंद्र।

अन्य नक्षत्रों के चरणों का स्वामित्व भी इस प्रकार विभिन्न ग्रहों को दिया गया है।

इसका बड़ा महत्त्व है, क्योंकि हम देखते हैं कि कभी-कभी कोई ग्रह किसी नक्षत्र विशेष के भिन्न-भिन्न चरणों में भिन्न-भिन्न फल, यहाँ तक कि विरोधाभासी फल देता है। इसका कारण चरण-विशेष के स्वामी ग्रह से उस ग्रह विशेष की मित्रता, शत्रुता या सम संबंध हो सकते हैं।

आगे भी जब पाठक अन्य नक्षत्रों के चरणों में स्थित विभिन्न ग्रहों के फलों को पढ़ें तो उस चरण के स्वामी ग्रह को भी समझने की चेष्टा करें। इससे फलों का आधार बहुत कुछ समझा जा सकता है।

अश्विनी नक्षत्र में सूर्य

अश्विनी नक्षत्र मेष राशि का प्रथम नक्षत्र है। मेष का स्वामी मंगल माना गया है तथा मेष को सूर्य की उच्च राशि का भी दर्जा दिया गया है। अश्विनी के चारों चरणों में सूर्य कैसे फल देता है, इसे देखें।


प्रथम चरण:
अश्विनी के प्रथम चरण में जन्मे जातक हष्ट-पुष्ट, आत्म-विश्वास से भरपूर तथा तर्क-शक्ति में प्रवीण होते हैं। पारिवारिक जीवन में संतान से सुख भरपूर मिलता है। वे दीर्घाय, धनी-मानी भी होते हैं। मंगल एक तप्त ग्रह है। सूर्य भी तप्त है। अतः स्वास्थ्य की दृष्टि से यहाँ सूर्य की स्थिति पित्त एवं रक्त--विकार की संभावना प्रबल बनाती है। ग्रह संकेत करते हैं और यदि हम इन संकेतों को समझकर सावधान रहें तो कोई कारण नहीं कि हम उनके दुष्प्रभाव को कम न कर सकें।


द्वितीय चरण:
इस चरण में स्थित सूर्य उतने अच्छे फल नहीं देता. जितना कि प्रथम अथवा चतुर्थ चरण में। अश्विनी के द्वितीय चरण में सूर्य की स्थिति आयु की दृष्टि से अशुभ मानी गयी है। यदि सूर्य के साथ चंद्र की युति हो जाए तो अशुभ फलों में वृद्धि होती है। हॉ. सूर्य पर मंगल की दृष्टि या उससे युति शुभ परिणाम देती है।


तृतीय चरणः
यहाँ सूर्य की स्थिति जातक को वैभव प्रदान करती है। लेकिन अकेला धन या वैभव ही पर्याप्त सूख प्रदान नहीं करता। इस चरण में सूर्य की स्थिति के दो फल बतलाये गये हैं। एक तो जातक की बुद्धि कुटिल हो सकती है। दूसरे, उसका स्वभाव उग्र और कभी-कभी हिंसक भी हो सकता है। इन सब बातो का उसके स्वास्थ्य पर भी धातक असर पड़ता है। पित्त विकार, रक्त विकार उसे ग्रस्त कर सकते हैं।


चतुर्थ चरण:
इस चरण में सूर्य यदि 10 अंश से 11 अंश के बीच होता है तो फल बहुत अच्छे बताये गये हैं। जैसे जातक कुशाग्र बुद्धि, प्रसिद्ध तथा नेतृत्व के गुणों से युक्त होता है। यदि वह सेना या सुरक्षा सेवाओं में हो तो उच्च पद प्राप्त करता है और यदि सामाजिक क्षेत्र में है तो वहाँ नेतृत्व की जिम्मेदारी बखूबी निभाता है। अपनी समस्त जिम्मेदारियां वह अत्यंत निष्ठा से पूरी करता है। इसका एक कारण यह भी है कि सूर्य की ऐसी स्थिति वाले जातक निर्मल. हृदय, धार्मिक वृत्ति के होते हैं। जैसेजैसे उनकी जीवन यात्रा आगे बढ़ती है, उन पर सौभाग्य की वर्षा होने लगती है।

इस तरह हम देखते हैं कि अश्विनी के प्रथम चरण अर्थात् 00.00 अंश से 3.20 अंश एवं चतुर्थ चरण 10.00 अंश से 13.20 अंश, इसमें भी 10,00 एवं 11.00 अंशों में सूर्य की स्थिति शुभ फल देती है।

अश्विनी स्थित सूर्य पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि के फल

ग्रहों की शुभ-अशुभ दृष्टि भी ग्रह-विशेष के फलों को प्रभावित करती है। प्रस्तुत हैं, अश्विनी स्थित सूर्य पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि के फल:


चंद्र
के फल की पहले चर्चा की गयी है। आयु के लिए यह अशुभ हो सकती है। ___ मंगल की दृष्टि के कारण जातक क्रूर हृदय हो सकता है। कारण सूर्य भी तप्त ग्रह है और मंगल भी। जातक के नेत्र भी लालिमा लिये हो सकते हैं। बुध की दृष्टि शुभ फल देती है। जातक का व्यक्तित्व आकर्षक होता है। जीवन भी सुख-सुविधा से पूर्ण होता है तथापि चालीस वर्ष की आयु के बाद अर्थाभाव की स्थिति बन सकती है।


गुरु
शुभ ग्रह है। सूर्य पर उसकी दृष्टि भी शुभ प्रभाव डालती है। जातक उदार हृदय, सत्ता से जुड़ा होता है।


शुक्र
की दृष्टि जातक में काम भावना को कुछ ज्यादा ही बढ़ाती है। वह काम वासना की पूर्ति के लिए जोड़-तोड़ में लगा रहता है।


शनि
की दृष्टि का फल अशुभ बताया गया है। सूर्य एवं शनि पिता-पुत्र होते हुए भी एक दूसरे के घोर शत्र माने गये हैं। शनि की दृष्टि जातक को दरिद्रता की ओर ढकेलती है।



अश्विनी के विभिन्न चरणों में चंद्र

अश्विनी स्थित चंद्र के शुभ फल प्राप्त होते हैं। अश्विनी में चंद्र का अर्थ है. इसी नक्षत्र में उसका जन्म। अश्विनी नक्षत्र में जन्मे जातक/जातिकाओं की चारित्रिक विशेषताओं के संबंध में हम प्रारंभ में ही पढ़ चुके हैं। यहाँ अश्विनी के विभिन्न चरणों में चंद्र की स्थिति के फल:


प्रथम चरणः
यदि चंद्रमा अश्विनी के प्रथम चरण में हो तो जातक का व्यक्तित्व शानदार होता है। वह विद्वानों, विशेषज्ञों की संगति पैदा करता है। उनसे ही विचारों के आदान-प्रदान में उसे आनंद आता है। ऐसा जातक चाहे निजी संस्थान में हो अथवा सरकारी सेवा में, उच्च पद पर आसीन होने की क्षमता रखता है। तथापि उसकी कार्यशैली से अधीनस्थ कर्मचारियों में थोड़ा-बहुत असंतोष व्याप्त रहता है।

कहा गया है कि लग्नस्थ अश्विनी में चंद्र की गुरु के साथ युति हो तो जातक 83 वर्ष तक तो जीवित रहता ही है।


द्वितीय चरणः
यहाँ स्थित चंद्रमा जातक को विलासिता की ओर ले जाता है। खान-पान का आनंद ही उसे प्रिय लगता है। ऐसा जातक व्यवहार-चतुर भी होता है।


तृतीय चरण:
यहाँ चंद्र की स्थिति हो तो जातक अत्यंत बुद्धिमानी, सोत्साही और सक्रिय होता है। विज्ञान के अतिरिक्त धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन में भी उसकी पर्याप्त रुचि होती है। ऐसा जातक अपने मित्रों के आड़े वक्त में भी काम आता है।


चतुर्थ चरणः
अश्विनी के अंतिम चरण में चंद्र स्थित हो तो जातक अपने ही प्रयत्नों से उच्च शिक्षण के अलावा विज्ञान की विभिन्न शाखाओंमें निष्णात होता है। 12.00 से 13.20 अंशों के मध्य जन्मे जातक चिकित्सा के क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित कर सकते हैं। यदि वे प्रशासनिक सेवा में जाना चाहें तो वे वहाँ भी सफल होते हैं।


अश्विनी स्थित चंद्र पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि


सूर्य
की दृष्टि जातक को उदार एवं परोपकारी बनाती है। उसे सत्ता पक्ष से भी अधिकार एवं अन्य बातों का लाभ मिलता है।


मंगल
की दृष्टि जातक के जीवन को परावलम्बी बना सकती है। उसे दंत एवं कर्ण पीड़ा भी हो सकती है।


बुध
की दृष्टि हो तो जातक का जीवन सुखी, धन-धान्य एवं यश से परिपूर्ण रहता है।

गुरु की दृष्टि हो तो जातक अत्यंत विद्वान ही नहीं, श्रेष्ठ गुरु भी सिद्ध होता है। समाज में उसकी काफी ऊँची प्रतिष्ठा होती है तथा उसके अधीनस्थ कई लोग काम करते हैं।

शुक्र की दृष्टि हो तो जातक धनी एवं अनेक स्त्रियों की संगति भी पाता है।

शनि की दृष्टि जातक के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालती है। वह अनुदार भी होता है, साथ ही अच्छी संतान के सुख से वंचित भी।

अश्विनी के विभिन्न चरणों में मंगल

अश्विनी में मंगल की स्थिति का दूसरा अर्थ है, मंगल का स्वराशिस्थ भी होना। कारण अश्विनी मेष राशि का प्रथम नक्षत्र है और मेष राशि का स्वामी मंगल माना गया है। अतः अश्विनी में स्थित मंगल सामान्यतः शुभ फल ही देता है तथापि अश्विनी के द्वितीय चरण में मंगल की स्थिति के अशुभ फल दर्शाये गये हैं।


प्रथम चरणः
यदि मंगल अश्विनी के प्रथम चरण में हो तो जातक/जातिका गणित, इंजीनियरिंग एवं सैन्य सेवाओं में सफलता प्राप्त कर सकते हैं। उत्तम स्वास्थ्य से युक्त ऐसे लोग समाज में भी उच्च प्रतिष्ठा पाते हैं। अपने कार्य क्षेत्र में तो वे प्रतिष्ठित होते ही हैं।


द्वितीय चरणः
यहाँ मंगल की स्थिति के अशुभ फल वर्णित हैं, यथा दरिद्रतापूर्ण जीवन, निःसंतान होने की पीड़ा आदि। ऐसे लोगों में प्रतिहिंसा की भी भावना होती है।


तृतीय चरणः
वैवाहिक एवं पारिवारिक जीवन के सुख की दृष्टि से इस
चरण में मंगल की स्थिति शुभ मानी गयी है। जातक को यायावरी वाली नौकरी या व्यवसाय फलप्रद होता है। ऐसे व्यक्तियों में कामभावना का भी अतिरेक बताया गया है।


चतुर्थ चरणः
यदि जातक/जातिका का जन्म 12 से 13 अंशों के मध्य हो तो वे निस्संदेह एक सफल-कुशल इंजीनियर बन सकते हैं। उन्हें अच्छी संतान का सुख प्राप्त होता है।


अश्विनी स्थित मंगल पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि


सूर्य
की दृष्टि हो तो जातक विद्वान, बुद्धिमान, मातृ-पितृ भक्त तथा धन-संपदा, पारिवारिक सुख से युक्त होता है।


चंद्र
की दृष्टि वासना में वृद्धि करने वाली मानी गयी है। जातक परायी स्त्रियों में कुछ ज्यादा ही रुचि लेने लगता है।


बुध
की दृष्टि भी काम भावना का अतिरेक करने वाली होती है। यदि अन्य ग्रहों की शुभ दृष्टि न हो तो जातक प्रदर्शन प्रिय होने के साथ-साथ वेश्यागामी भी हो सकता है।


गुरु
की दृष्टि के शुभ फल होते हैं। जातक का समाज में, परिवार में मान-सम्मान होता है, वह धन के साथ-साथ सत्ता शक्ति का भी उपभोग करने वाला हो सकता है।


शुक्र
की दृष्टि उसकी विलासप्रियता बढ़ाती है। परस्त्रियों में आसक्ति उसके लिए संकट उत्पन्न करती है। तथापि वह जातक को समाजसेवी भी बनाती है।


शनि
की दृष्टि न हो तो जातक पारिवारिक सुख, यहाँ तक कि मातृ-स्नेह से भी वंचित रहता है।


अश्विनी के विभिन्न चरणों में बुध

अश्विनी के दो चरणों में बुध के शुभ फल मिलते हैं तथा दो में अशुभ। द्वितीय एवं तृतीय चरण में बुध की स्थिति लाभदायक होती है, जबकि प्रथम एवं चतुर्थ चरण में बुध हो तो जातक का जीवन दुखी ही बीतता है।


प्रथम चरणः
यहाँ बुध जातक को नास्तिक बनाता है। ईश्वर पर से अनास्था उसकी छुद्र वृत्तियों को भी मुक्त कर देती है। वह सुरा-सुंदरी का शौकीन तथा अपने स्वार्थ के लिए दूसरों से विश्वासघात भी कर सकता है। आम तौर पर समाज में वह निम्न नजरों से देखा जाता है।द्वितीय चरणः द्वितीय चरण में बुध हो तो जातक विभिन्न विषयों का ज्ञान प्राप्त करता है। उसे अच्छा सतान सुख भी मिल जाता है।

लेकिन एक फल यह भी बताया गया है कि ऐसा जातक पैंतीस वर्ष की अवस्था के बाद संसार को त्याग संन्यासी भी बन सकता है।


तृतीय चरण:
तृतीय चरण में स्थित बुध जातक को ईश्वरीय कृपा से लाभान्वित करता है। वह कर्तव्यनिष्ठ तथा सभी जिम्मेदारियां बखूबी निभाना जानता है। ऐसे जातकों को पुत्रों की संख्या अधिक बतायी गयी है। तृतीय चरण में बुध केवल स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं होता।


चतुर्थ चरण:
यहाँ बुध की स्थिति के अशुभ फल कहे गये हैं, यथा व्यवसाय में असफलता, अभावपूर्ण जीवन, चारित्रिक दोषों का आधिक्य।


अश्विनी स्थित बुध पर विभिन्न ग्रहों की दृष्टि


सूर्य
की दृष्टि के शुभ फल मिलते हैं। जातक सत्यनिष्ठ, परिवार एवं संबंधियों में प्रिय तथा शासन पक्ष से लाभान्वित होता है।


चंद्र
की दृष्टि जातक को ललित कलाओं के क्षेत्र में ले जाती है। संगीत के प्रति उसकी रुचि होती है। अपनी कला से वह धनोपार्जन भी कर सकता है। वह हर तरह से सुखी होता है।


मंगल
की दृष्टि भी शुभ फल देती है, यद्यपि बुध मंगल को शत्रुता की दृष्टि से देखता है तथापि मंगल की दृष्टि के कारण यह सत्तासीन लोगों का कृपाभाजन बनकर लाभ उठा सकता है।


गुरु
की दृष्टि के भी शुभ फल मिलते हैं। जातक को धन-सुख के अलावा परिवार का भी पूर्ण सुख मिलता है।


शुक्र
की दृष्टि के फलस्वरूप उसे मान-सम्मान, यश, अर्थ सभी कुछ प्राप्त हो सकता है। अपने आचरण से वह सभी का प्रिय बनता है।


शनि
की दृष्टि के दो फल मिलते हैं। यद्यपि जातक समाजोपयोगी कार्य करता है, तथापि परिवार के सदस्यों से विवाद, कलह बना रहता है।


अश्विनी स्थित गुरु के फल

अश्विनी नक्षत्र में स्थित गुरु जातक के लिए अत्यंत शुभ होता है। वह नक्षत्र के किसी भी चरण में स्थित हो, शुभ फल ही देगा। गुरु एक सात्विक, शुभ ग्रह है। परंपरा से गुरु को देवता का गुरु माना गया है, विवेक प्रदान करने वाला। अश्विनी नक्षत्र में गुरु अपने कारकत्व के अनुसार शुभ फल देने वाला कहा गया है।