• सप्तम भाव के नाम : सर्वार्थ चिन्तामणिः चिट्टोत्त, काम, मदन (कामेच्छा), पत्नी, भृति (पति), दधि (दही), सूप। फल दीपिकाः जामित्र, चिट्टोत्त (कामना), मद, कामुकता, अस्त (अस्त), काम (कामना), सून अध्वन (पन्थ या सड़क), लोक (लोग), पति (आर्य), मार्ग (पथ), एवं भार्या (पत्नी)। जातक पारिजातः जामित्र, काम (प्रेम), गमन (सहवास, यात्रा आदि), कलत्रसम्पत्त (स्त्रीधन), चून, अस्त एवं सप्तम। जातक अलंकार :जामित्र, अस्त, स्मर, मदन (कामेच्छा), मद, खून एवं काम। होरा सारः युवती (भार्या), जामित्र, अस्त, भावना, छून, काम एवं चित्त।
  • सप्तम भाव चार भावों में से एक है जो केन्द्र, कंटक या चतुष्ट्य भी कहलाता है। यह उत्तम भावों में से एक है एवं यह जातक के लिए मंगलकारी होगा।
  • सप्तम भाव के महत्त्व : सप्तम भाव के भाव कारक शुक्र है। पराशरः भार्या, यात्रा, व्यापार, दृष्टि की हानि, मृत्यु । उत्तर कालामृतः विवाह, अपवित्रता, विजयी प्रेम, व्याभिचारिणी के साथ शत्रुता, सत्मार्ग से विमुखता, श्रेष्ठ इत्र, संगीत, पुष्प, स्वादिष्ट भोजन एवं पेय पदार्थों का भोग करना, सुपारी युक्त पान चबाना, यात्रा में अंतराल, दधि, स्मृति की हानि, पहनावे की प्राप्ति, वीर्य, पौरुष, पति की ईमानदारी, पत्नियों का जोड़ा, जनन अंग, मूत्र, मलद्वार, व्यापार, मीठा पेयजल, अमृत को चखना, सूप, घी आदि उपहार, पद एवं शक्ति की हानि, शत्रु पर विजय, अन्य स्थल पर रखा हुआ धन, विवाद, यौन रोग, दत्तक पुत्र, घी में बने आनन्ददायक भोजन, विदेशी स्थल, भार्या, कामानन्द, चोरी।
  • सर्वार्थ चिन्तामणिः क्रय, स्वास्थ्य, व्यापार, वाद-विवाद, वासना, सेवक, भार्या, महिलाएँ, चोरियाँ, यात्रा से वापसी, बहिन का पुत्र (भान्जा), आवागमन। होरा सारः किसी की प्रजनन शक्ति, वैवाहिक सफलता आदि।