• षष्ठम भाव के नाम : सर्वार्थ चिन्तामणिः रोग, क्षत (चोट), अरि (अति शत्रु), व्यसन (आसक्ति), चोर (चुराया हुआ), विघ्न (अवरोध)। फल दीपिकाः ऋण (कर्ज), अस्त्र (हथियार), चोर (चोर) , क्षत (ज़ख्म), रोग (व्याधि), शत्रु (अरि), जनति (पैतृक सम्बन्ध), अजि (युद्ध), दुष्कृत्य (एक दुष्ट कार्य), अघ (पाप), शीति (भय), एवं अवज्न (अवनमन)। जातक पारिजातः रोग (व्याधि), अंश (भाग), शस्त्र (अस्त्र), भय (आतंक), शस्त्र, रिपु (शत्रु), एवं क्षत (घाव)। जातक अलंकार : रिपु (शत्रु), द्वेष (ई), बैरी (शत्रु), एवं क्षत (घाव)।
  • षष्ठ भाव चार भावों में से एक है जो लीन स्थान कहलाते हैं जिसका अर्थ छिपे हुए या गुप्त भाव है। यह दुषस्थानों या अरिष्ट के भावों में से एक जाना जाता है। यह चार भावों में से एक है जो आपोक्लिम भाव या केडेंट भाव कहलाते हैं। वह उपचय कहलाने वाले चार भावों में से भी एक है।
  • षष्ठ भाव के महत्त्व : षष्ठ भाव के भाव कारक शनि एवं मंगल हैं। पराशरः मामा, मृत्यु के प्रति संदेह, अति शत्रु, व्रण या फोड़े, सौतेली माता। उत्तर कालामृतः रोग, बाधा, विरोध में युद्ध करना, मामा, कफ, शरीर में सूजन, क्रूर, कर्म, उन्माद, व्रण, द्वेष, कृपणता, अस्वस्थता, मैथुन सम्बन्धी घाव, पके हुए भात, थकावट, ऋण, तिरस्कार, शत्रु की संतुष्टि, क्षय, ताप, घाव, मानसिक चिन्ता, तीव्र वेदना, बहुतों के साथ शत्रुता, सतत् नेत्र कष्ट, किसी की उपकारिता से भय या कष्ट, असमय भोजन, नौका पर से गिरना, लाभ, श्रम, विष, कष्टदायक गठिया रोग या उदर पीड़ा, बेड़ियाँ, स्वयं के लाभों की रक्षा करना, मूत्र सम्बन्धी कष्ट, आमातिसार, छ: जायके, गहरा तिरस्कार, सेवा, चोरी, आपत्ति, बंदीगृह, भ्राताओं के प्रति गलतफहमी।।
  • सर्वाथ चिन्तामणिः बुरा स्वास्थ्य, दुर्दशा, अति शत्रु, अतिसेवक, कुकर्म, भारी कर्म, शत्रुओं द्वारा अपने शत्रु को मारने के उद्देश्य से किया गया जादू-टोना, संदेह, युद्ध, चाचा, भैंस, रोग आदि।। होरा सारः चचेरे या ममेरे भाई-बहिन, अति शत्रु, घाव आदि।