• द्वादश भाव के नाम : सर्वाथ चिन्तामणिः व्यय (खर्च), अन्त्य (अन्तिम चिन्ह), रिष्फ (बुरा), विनाश (ध्वंस)। फल दीपिकाः दुःख (कष्ट), टंगड़ी (पाँव), वाम नयन (बायाँ नेत्र), क्षय (हानि, अन्त), सूचक (सूचना वाहक, गुप्तचर), अन्त्य (अन्तिम), दरिद्रय् (निर्धनता), पाप (दुष्कर्म), शयन (शैया), व्यय (खर्च), रिफ एवं बन्ध (बन्दीगृह)। जातक पारिजातः रिष्फ, व्यय (खर्च), द्वादश (बारहवाँ) एवं अन्त्यभा (अन्तिम भाव)। जातक अलंकार : प्रान्त्य, अन्तिम एवं रिष्फ। होरा सारः रिष्फ, लोप (रिक्त), व्यय (हानि, मृत्यु, गमन), विगम।
  • द्वादश भाव चार भावों में से एक है जो लीन स्थान कहलाते हैं। जिसका तात्पर्य छिपे हुए, या गुप्त भाव है। यह दुषस्थानों या अरिष्ट के भावों में से एक है। यह आपोक्लिम या केडेंट भाव कहलाने वाले चार भावों में से भी एक भाव है।
  • द्वादश भाव के महत्त्व : द्वादश भाव का भाव कारक शनि है।
  • पराशरः व्यय, शत्रुओं द्वारा प्राप्त सन्देश, स्वयं की मृत्यु। उत्तर कालामृतः निद्रा से जागना, मानसिक कष्ट, दो पग, शत्रु से भय, बंदीगृह, कष्ट से मुक्ति, ऋणों से मुक्ति, गज, अश्व, पैतृक सम्पत्ति, शत्रु, स्वर्ग में प्रवेश, वाम नेत्र, लोगों की शत्रुता, अंगविच्छेद, उदारता, विवाह द्वारा हानि, पलंग का व्याग, नियुक्ति का अन्त, जंजीरों में शत्रु के बंदीगृह का स्थान, मानसिक तनाव, दुर्भाग्य, हानि, माता-पिता एवं भाईयों के प्रसन्नता के विचारों पर आघात, चर्चा या विवाद, क्रोध, शारीरिक अपकार, मृत्यु, अन्य स्थल पर गमन, समस्त स्त्रोतों द्वारा व्यय, भार्या का ह्रास ।
  • सर्वाथ चिन्तामणिः आत्म त्याग, आनन्द, त्याग, विवाह, दान संवर्धन, व्यय, चोट, मामा, मौसी, मामी, युद्ध में पराजय। होरा सारः व्यय एवं दुष्कर्मों का भाव।।