• अष्टम भाव के नाम : सर्वाथ चिन्तामणिः क्षीर (दुग्ध), गुह्य (गुड़), मोंत्र कृच (मूत्र सम्बन्धी कष्ट), बुह्य (छिपा हुआ), रन्ध्र (बुरा), मरण (मृत्यु), अंत (मृत्यु), आयु (उम्र)। फल दीपिकाः मांगल्य, रन्ध्र (भेद्यता), मलिन, अधि, (मानसिक पीड़ा), पराभव (पराजय या अपमान), आयुष क्लेश (कष्ट), अपवाद (कलंक या मान-हानि), मरण (मृत्यु), अशुचि | (अशुद्धता), विघ्न (अवरोध या प्रतिबन्ध) एव दास (सेवक)। जातक पारिजातः रन्ध्र, आयुष (जीवन), अष्ट, रण (युद्ध) मृत्यु (मरण), एवं विनाश। जातक अलंकार : रन्ध्र (भेद्यता), आयुष, छिद्र, याम्य (यम का), निधन, लयपद (नाश का भाव) एवं मृत्यु (मरण)। होरा सारः रन्ध्र (भेद्यता), निधन (मृत्यु), विनाश (क्षय) एवं दुःख (सन्ताप), रन्ध्र भाव के अन्य सदृशीकरण हैं।
  • |अष्टम भाव चार भावों में से एक है जो लीन स्थान कहलाते हैं जिसका अर्थ है छिपा हुआ या गुप्त भाव। यह दुषस्थानों या अरिष्ट के भावों में से एक है। यह भाव केन्द्र के पश्चात् आता है तथा यह पणफर या सफल भाव के नाम से जाना जाता है। यह दो भावों में से एक है जिन्हें चतुरस्त्र या वर्गाकार भाव कहते हैं।
  • अष्ठम भाव के महत्त्व : अष्ठम भाव का भाव कारक शनि है। पराशरः दीर्घायु, युद्ध, अति शत्रु किले, मृत की सम्पत्ति, घटित एवं घटने वाली बातें। उत्तर कालामृतः दीर्घायु, प्रसन्नता, पराजय, पैतृक धन, पीड़ित मुख, सम्बन्धियों की मृत्यु हेतु शोक, जादू-टोना, भोजन के लिए संघर्ष, मूत्र रोग, आपत्ति, भाई का शत्रु, भार्या की रोगावस्था, केशों का जूड़ा अनजाने में पराया धन मिलना, अचल सम्पत्ति, दुष्ट व्यक्ति से मिलना, दुष्कर्म, प्राणी को मारना, अंगों का नष्ट होना, प्राणदण्ड, भयंकर पीड़ा, कहानी से मानसिक चिन्ता, अभाग्य की श्रृंखला, क्रूर कर्मों में अत्यधिक परिश्रम, युद्ध, एक बड़ी मानसिक चिन्ता।
  • सर्वार्थ चिन्तामणिः दीर्घायु एवं शत्रुता, मृत्यु, निर्देशक, शक्तियाँ, कलह, संघर्ष, दरार, सम्बन्धियों में संघर्ष, घृणा, स्थल जो दुर्गम हों, पत्नि एवं शत्रुओं के दुर्ग का विनाश, नदी पार करना आदि अष्टम भाव द्वारा देखे जाते हैं। होरा सारः रोग, मृत्यु आदि।