• एकादश भाव के नाम : सर्वार्थ चिन्तामणिः आयाम एवं लाभ (प्राप्ति)। फल दीपिकाः लाभ (प्राप्ति), आय (वेतन), आगमन (प्राप्ति), आप्ति (प्राप्त करना, लाभ), सिद्धि (परिपूर्णतः, संतृप्ति), वैभव (धन या सम्पत्ति), प्राप्ति (लाभ), भाव, मनन/स्तुति करना, बड़ी बहन या बड़ा भाई, बायाँ कर्ण, सरस (कुछ रसपूर्ण एवं रसभरा), एवं प्रसन्नतादायी या हर्षजनक समाचार सुनना। जातक पारिजातः एकादश (ग्यारहवाँ), उपान्त्य (उपान्त), भाव, आय (वेतन), लाभ (प्राप्ति)।
  • एकादश भाव उत्तम भावों में से एक है एवं यह जातक के लिए मंगलकारी सिद्ध होगा, यह भाव केन्द्र के पश्चात् आता है तथा इसे पणफर या सफलतादायी भाव कहते हैं। यह उपचय कहलाने वाले चार भावों में से भी एक है।
  • एकादश भाव के महत्त्व : एकादश भाव का भाव कारक बृहस्पति है। पराशरः समस्त वस्तुएँ, पुत्रवधु, आय, समृद्धि, चतुष्पद। उत्तर कालामृतः सभी स्त्रोतों से लाभ, दुष्ट इच्छाएँ, समस्त प्रकार की प्राप्तियाँ, निर्भरता, बड़ा भाई-बहिन, चाचा, देवी-देवताओं की पूजा, उत्तम की आराधना, विद्या, स्वर्ण व सम्पत्ति का संचय, अत्यन्त बुद्धिमान, पैतृक सम्पत्ति, घुटना, श्रेष्ट स्थान, आभूषणों एवं मोतियों का प्रेम, स्वामी की सम्पत्ति, पूंजी में रुचि कम होना, किसी की प्रेमिका हेतु । स्वर्णाभूषण, बुद्धि, मंत्रीत्व, देवर, लाभ, भाग्योदय, मनोवांछित फल, सरल लाभ, भोजन बनाना, कामना, मातृ, दीर्घायु, कर्ण, पिण्डली, सुन्दर चित्रण, प्रायोगिक कला में निपुणता। सर्वार्थ चिन्तामणिः कार्यों में वृद्धि, उद्योगों में सफलता, व्यापार से लाभ, गज, गृह, वेष, यातायात, वाहन, बिस्तर, स्वर्ण व धन सम्पत्ति की कमी, कुँआरी युवतियों व हाथियों का लाभ, श्वसुर आदि का निर्धारण एकादश भाव से किया जाता है। होरा सारः किसी की सम्पत्ति, धन सम्बन्धी लाभ आदि।