प्रथम भाव के नामः।
सर्वार्थ चिन्तामणिः होरा, तनु (देह), मूर्ति (रुप), उदय (उत्थान), शिर (मस्तिष्क)।
फल दीपिकाः लग्न, होरा, काल्य, उदय (उत्थान) देह, रुप, शीर्ष, वर्तमान (जीविका), जन्म।
जातक पारिजातः कल्प, उदय (उत्थान), आद्य (प्रथम), तनु (दह), जन्म, विलग्न, होरा।।
जातक अलंकारः मूर्ति (आकृति), अंग (चालन अंग), तनु (देह), उदय (लग्न), वापुस (देह), कल्प एवं आद्य । ||
होरा सारः तनु (देह), उदय (उत्थान), प्राग लग्न (पूर्व में उदय होने वाला बिन्दु), लेख, होरा।।
प्रथम भाव चार भावों में से एक है जो केन्द्र, कंटक या चतुष्ट्य भी कहलाता है। यह उत्तम भावों में से एक है एवं जातक के लिए मंगलकारी होगा।

प्रथम भाव के महत्त्वः प्रथम भाव का कारक सूर्य है।
पराशरः शारीरिक गठन, रुप, बुद्धि, मुखमण्डल, बल एवं दुर्बलता, प्रसन्नता एवं दुःख, सहज स्वभाव |
बृहत् जातकः निर्धारण शक्ति । उत्तर कालामृतः तन, चालन अंग, प्रसन्नता एवं दुःख, वृद्ध आयु, ज्ञान, जन्म स्थान, यश, स्वप्न, शक्ति, प्रतिष्ठा, राजनीति, दीर्घायु, शान्ति, आयु, केश, रुप, गर्व, जीविका, अन्यों के लिए जुआ, कलंक, पदवी, त्वचा, निद्रा, प्रवीणता, गबन, दूसरों का अपमान करने की प्रकृति, रोगों से मुक्ति, पृथक्करण, प्रकृति, कार्यालय, मवेशियों के प्रजनन में अध्यवसाय, शिष्टाचार के बोध की कमी, स्वयं की जाति के लोगों द्वारा दोषित ।
सर्वार्थ चिन्तामणिः स्वास्थ्य, मान-सम्मान, गुण, प्रकृति, संवहन करना, आयु, दशा, जाति, शुद्धता, प्रसन्नता, दुःख, अभिव्यक्ति, आकृति, वर्ण, भान्जे की। |पत्नी, ये सभी प्रथम भाव से निर्णित किये जाते हैं।
होरा सारः शारीरिक वृद्धि, अवयव या अंग ग्रहण करना। सर्वार्थ चिन्तामणिः प्रथम भाव को बहिन की पुत्रवधु के नाम से जाना जाता है क्योंकि बहिन का भाव तृतीय है, उसकी गर्भावस्था पंचम जो कि सप्तम एवं उसकी पत्नी सप्तम से सप्तम है, जो कि प्रथम भाव है।