प्रथम भाव, चतुर्थ भाव, सप्तम भाव, अष्टम भाव एवं १२वे भाव में से किसी भी भाव में मंगल का होना जन्मपत्रीका को मांगलिक बना देता है, इस दोष से प्रभावित पुरुष जातक मौली या मंगल तथा स्त्री जातक को मंगल या चुनरी स्थान भेद से माना जाता है ।

    प्रथम भाव में मंगल –

    जब जातक की जन्मपत्रिका के प्रथम भाव में वृष या तुला का मंगल होता है तो जातक के स्वास्थ पर बुरा प्रभाव डालता है ऐसा जातक क्रोधी, झगडालू, जिद्धि स्वभाव का हो जाता है ।

    चतुर्थ भाव में मंगल –

    ७वे भाव में मंगल होने पर जातक में बुधि की कमी रहती है, स्वास्थ दुर्बल रहता है, मिथुन या कन्या का मंगल होने पर दो विवाह होते है, पर दोनों के अनिष्ट की आशंका रहती है, अपने घर का (मेष या वृश्चिक) का मंगल या उच्च (मकर)का मंगल होने इज स्त्री सुख मिलता है तथा व्यापर में सफल रहता है, मकर या कुंभ का मंगल जातक को दुराचारी बनता है ।

    सप्तम भाव में मंगल –

    मूक-बधिरता, नपुंसकता, अजीर्ण, शक्तिहीनता, आमाशय की गड़बड़ी, वायुजन्य पीड़ा, हृदय गति रुकना, सन्निपात, भ्रान्ति, गले या नासिका के रोग, उन्माद, जीभ रोग, मिर्गी आदि।

    अष्टम भाव में मंगल –

    स्वगृही (मेष या वृश्चिक) या उच्च (मकर )का मंगल उत्तम स्वास्थ तथा दीर्घायुष्य देता है, किन्तु नीच (कर्क) का मंगल स्वास्थ्य हानी करता है I वृष और तुला का मंगल स्त्री की ओर से दुःख तथा व्यापार में धन की हानि कराता है सिंह का मंगल धन एवं स्वस्थ्की की हानी के साथ ही अल्पायु बनता है I पत्नी कर्कशा मिलती है ।

    द्वादश भाव में मंगल –

    दाम्पत्य जीवन में असंतुष्टि, धन एवं विद्या की कमी, स्वगृही या उच्च का मंगल लोभी वनता है, नीच (कर्क)-का मंगल होने इज दुराचार में धननाश कराता है I सिंह का मंगल राजदण्ड का भागी बनता है, मिथुन और कन्या का मंगल अहंकारी बनता है I धनु या मीन का मंगल सबसे विरोध तथा धन का अपव्यय करता है ।

    भौमपंचक दोष –

    सभी ग्रह अपने से सातवे भाव में देखता है, अर्थात् सभी ग्रह सातवीं दृष्टि वाले होते है, परन्तु मंगल, गुरु और शनि की सातवी दृष्टि के अतिरिक्त एनी विशिष्ट दृष्टियाँ भी मणि गयी है I यथा- मंगल की चौथी और आठवी दृष्टि गुरुकी पांचवी और नवी दृष्टि तथा शनि की तीसरी और दसवी दृष्टि होती है I ये जिस भाव को देखते है, उसे भी अपने प्रभाव से प्रभावित करते है ।

    रथम चतुर्थ, सप्तम, अष्टम, द्वाश भाव में मंगल दोष के अतिरिक्त सुर्य, मंगल, शनि, राहु, केतु, ये पांच अशुभ ग्रह भी अपनी दृष्टि या युति से जनाम्पर्त्रिका के भाबो को देखते है तथा उक्त भाव के फल को नष्ट या कम करने में सक्षम होते है ये ग्रह भी ।