- प्रथम भाव से जातक की शरीर की स्थिति, स्वास्थ्य, रूप, वर्ण, चिन्ह, जाती, स्वभाव, गुण, आकृति, सुख, दुःख, सिर, पितामह तथा शील आदि का विचार करना चाहिए ।
- भाव से धन संग्रह, पारिवारिक स्थिति, उच्य विद्या, खाध्य-पदार्थ, वस्त्र, मुखस्थान, दाहिना आँख, वाणी, अर्जित धन तथा स्वर्णदि धातुओं का विचार किया जाता है I
- तृतीय भाव से पराक्रम, छोटे भाई-बहनो का सुख, नौकर-चाकर, साहस, शोर्य, धैर्य, चाचा, मामा, तथा दहिने कान का विचार करना चाहिये I
- चर्तुथ भाव से माता, स्थायी संपति, भूमि, भवन, वाहन, पशु, आदि का सुख, मित्रो की स्थिति, वापी-कूप-तड़ागादि की स्थिति, श्वसुर तथा ह्रदय-स्थान का विचार करना चाहिये I
- पंचम भाव से विद्या, बुधि नीति, गर्भस्थिति, संतान, गुप्त्मंत्रणा, मंत्रसिधि , विचार-सक्ती, लेखन, प्रबंधामक योग्यता, पूर्व जन्म का ज्ञान, आध्यात्मिक ज्ञान, प्रेम-संबधित, इच्छाशक्ति तथा उदरस्थान आदि का विचार करना चाहिये I
- षष्ठ भाव से शत्रु, रोग, कर्ज, चोरी अथवा दुर्घना, काम, क्रोध, मद, मोह, लोभादि विकार, अपयश, मामकी स्थिति, मोसी, पापकर्म, गुदा स्थान तथा कमर-सम्बन्धी रोगों का का विचार करना चाहिये I
- सप्तम भाव से स्त्री एवं विवाह-सुख, स्त्रियों की कुण्डली में पति का विचार, वैवाहिक सुख, साझेदारी के कार्य, प्रवास, छोटे भाई-बहनों की संताने, यात्रा तथा जननेन्द्रीय-सम्बधी गुप्त रोगोका का विचार करना चाहिये I
- अष्टम भाव से मृत्यु तथा मृत्यु के कारण, आयु, गुप्त्धंकी, प्राप्ति, विघ्न, नदी अथवा समुद्रकी यात्राएँ, पूर्वजन्मोंकी स्मृति, मृत्यु के बाद की स्तिथि, ससुराल से धनादि प्राप्त होने की स्तिथि, दुर्घटणा, पिता के बडे भाई तथा गुदा अथवा अण्डकोश-सम्बधी गुप्तरोगों का का विचार करना चाहिये I
- नवम भाव से धर्म, दान, पुण्य, भाग्य, तीर्थयात्रा, विदेश-यात्रा, उत्त्तम विद्या, पौत्र, छोटा बहनोई, मानसिक वृति, मरणोत्तर जीवन का ज्ञान, मंदिर,गुरु, यश, तथा जंधे आदि का का विचार करना चाहिये I
- दसम भाव से पिता, कर्म, अधिकारकी प्राप्ति, राज्य-प्रतिष्ठा, पदोन्नति, नोकरी, व्यापार, विदेश-यात्रा, जीविका का साधन, कार्यसिद्धि, नेता, सास, आकाशीय स्तिथि एवं घुटनों का का विचार करना चाहिये I
- एकादश भाव से आय, बड़ा भाई, मित्र, दामाद, पुत्रवधू , ऐश्वर्य-सम्पत्ति, वाहन आदि के सुख, पारिवारिक सुख, गुप्धन, दाहिना कान, मांगलिक कार्य, भौतिक पदार्थ, दुसरी पत्नी तथा पैर का का विचार करना चाहिये I
- बारवे भाव से धन हानी, खर्च, दंड, व्यसन, शत्रुपक्ष से हानी, बायाँ नेत्र, अपव्यय गुप्तसम्बन्ध, दुःख, पीरा, बंधन, कारागार, मरणोप्रान्त जिविकी गति, मुक्ति, धोखा, राजकीय संकट तथा पैरके तलुए का का विचार करना चाहिये Iअष्टमेश तथा लाभाधिपति नैसगिर्क शुभ ग्रह के भाग्य में या लाभस्थान में रहने से मध्यमायु प्राप्त होगी ।
- लग्नाधिपतियों के परिवर्तन होने से एवं लग्न में नैसगिर्क सुभ ग्रहों के होने से मध्यमायु प्राप्त होगी ।
- धनु लग्न के लिए अष्टमाधिपति चन्द्र के स्वक्षेत्र में रहने पर, शनि-बुध, शनि-केतु, शनि-गुरु, शनि-शुक्र, शनि-रवि या शनि-मंगल के लाभ स्थान में रहने पर मध्यमायु प्राप्त होगी ।
- केंद्र में सुभ ग्रह होने पर आयु के लिए जिम्मेदार शनि के ३, ६, स्थान में रहने पर मध्यमायु प्राप्त होगी ।
- राज्य में लग्नाधिपति तथा लाभ में अष्टमधिपति के रहने से स्थान में मध्यमायु प्राप्त होगी । अष्टमाधिपति नैसगिर्क शुभ ग्रहों के साथ मिलकर एकादश स्थान में होने पर, रवि लाभ में तथा नैसगिर्क पाप ग्रह त्रिकोण में होने से मध्यमायु प्राप्त होगी ।
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