• नवम भाव के नाम : सर्वार्थ चिन्तामणिः धर्म (कर्तव्य), दया (करुणा), पैतृक (पिता), भाग्य (संयोग), गुरु (उपदेशक), तपस (तपस्या), लाभ (प्राप्ति), शुभार्जितानि (अर्जित गुण)। फल दीपिकाः आचार्य (उपदेशक), देवता (ईश्वर), पितृ (पिता), शुभ (मंगलकारी), पूर्व भाग्य (पूर्व का भाग्य), पूजा आराधना), तपस (तपस्या), सुकृत (गुण या पुण्य, एक उत्तम या सत्कर्म), पौत्र (पोता), जप (प्रार्थना) एवं आर्यवम्स (कुलीन कुटुम्ब)। जातक पारिजातः धर्म गुण), गुरु (पिता), शुभ (मंगलकारी वस्तुएँ), तपस (तपस्या), नव (नवम), भाग्य (किस्मत)। जातक अलंकार : गुरु, धर्म (गुण), शुभ (मंगलकारी). तपस (तपस्या) एवं मार्ग (पथ)।
  • नवम भाव उत्तम भावों में से एक है जो जातक के लिए कल्याणकारी होगा। यह चार भावों में से एक है जो आपोक्लिम भाव या केडेंट भाव है। यह उन दो भावों में से भी एक है जो त्रिकोण (या त्रिभुजाकार) भाव हैं तथा मंगलकारी है।
  • नवम भाव के महत्त्व : नवम भाव के भाव कारक सूर्य एवं बृहस्पति हैं। पराशरः भाग्य, भार्या का भाई, धर्म, भ्राता की पत्नी, तीर्थयात्रा। उत्तर कालामृतः भिक्षा देना, गुण, धर्म, तीर्थयात्रा, तपस्या, वृद्धों के प्रति सम्मान, चिकित्सकीय औषधि, संवहन करना, मन की शुद्धता, दैवीय अर्चना, विद्या उपार्जन हेतु कठिन परिश्रम, शान, परिवहन, धन, भाग्य, प्रतिष्ठा, उपाख्यान, यात्रा पवित्र स्नान, पौष्टिक आहार, सुसंगति, प्रसन्नता, पैतृक धन, पुत्र, पुत्री, समस्त प्रकार की सम्पत्ति, अश्व, गज, भैंस, राज्याभिषेक सभा, ब्राह्माणिक विश्वास स्थापित करना, वैदिक त्याग, सम्पत्ति का संचार।
  • सर्वार्थ चिन्तामणिः पवित्र ग्रन्थों को पढ़ना, वैदिक मन्दिरों में आस्था, तीर्थ स्थलों की यात्रा, प्रेम, राजाओं का राज्याभिषेक, उपदेशक, प्रशंसनीय कर्म, जल संग्रह (कुएँ, तालाब, झीलें आदि), साला, पति के भाई एवं उनकी पत्नियाँ तथा सरकारी पक्ष। होरा सारः भाग्य स्थान (किस्मत), गुरु स्थान (वृद्ध एवं उपदेशक) तथा धर्म स्थान (धर्मपरायण)।