मनुष्य को जीवन में 3 ऋणो के प्रति मुख्य ध्यान रखना होता है

 1: देव ऋण।
जिस परमात्मा ने कृपा की कि हमे मानव योनि दी जिससे हम अपने कर्म सुधार सके। मानव योनि के अलावा अन्य योनिया सिर्फ पूर्वकृत कर्म भोगती है। पर मानव विवेक बुद्धि होने के कारण पूर्वकृत कर्मो को भोगता हुआ नए कर्मो का सृजन भी करता है। ये नए कर्म श्रेष्ठ हो तो उध्र्व गति अन्यथा अधो गति प्राप्त होती है।
: अतः उस देव महादेव के प्रति किये गए कर्मो को देव ऋण के निमित्त किये जाते है। जैसे अर्चना उपासना दान ध्यान आदि।

 2. गुरु ऋण

जिस व्यक्ति ने आपको सार्थक ज्ञान दिया हो, उसके संतुष्टि करना भी आपका कर्तव्य होता है क्योंकि ज्ञान अमूल्य होता है।

 3. पितर ऋण

जिस वंश व् गोत्र के माध्यम से आपको ईश्वर ने ये अवसर दिया की आप मानव योनि प्राप्त करें। उस कुल व् पूर्वजो के प्रति भी आपका गहन कर्तव्य है। उनकी सन्तुष्टि व् तृप्ति के निमित्त कर्म इस ऋण से सम्बंधित होते है।

* मानव को जीवन में इन तीनो ऋण का सदैव ध्यान रखना चाहिए। यदि तीनो की सन्तुष्टि हो जाये तो वह् देव पद का अधिकारी हो जाता है।

* पितृ ऋण का मतलब सिर्फ पिता नही है बल्कि पूर्वज ऋण जो पिता व् उनके पिता सभी को शामिल करता है ।।
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 संसार भले पा लो। देव गुरु व् पितृ कृपा न प्राप्त की तो खाली ही जाओगे। क्योंकि सारे सदाचार कर्म इन तीनो ऋणो में ही फलीभूत हो जाते हैं।
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:  श्राद्ध पक्ष व अंतिम पिंडदान के समबन्ध मे कुछ जानकारी

: आश्विन में कृष्ण पक्ष की मृतक तिथि में पितृ श्राद्ध किये जाते है। वैज्ञानिक कारण है की इन दिनों चंद्र पृथ्वी के अत्यंत निकट हो जाता है।
‬: चंद्रलोक के ऊपरी भाग में पितृलोक की स्थान बताई गयी है।
: चंद्रलोक से पितृलोक की यात्रा हेतु उन्हें शक्ति प्राप्त होती है।
 : जब वे पितृलोक को प्राप्त होते है तो प्रक्रिया करने वाले को आशीष प्राप्त होता है।।
‬: पुत्र को इसका दायित्व दिया गया है। वैज्ञानिक कारन सुनिए
: पुत्र का अर्थ है
: पुं नामक नर्क से त्राण करने वाला।
: पुत्र के कर्म
:माता पिता की आज्ञा निर्वहन
:अंतिम संस्कार व् क्रियाएँ
:गया में अंतिम पिंडदान
 ‬: एक मार्ग से दो वस्तुएं उत्पन्न होती है। एक पुत्र दूसरा मूत्र। जो व्यक्ति👆ऊपर वाले कार्य कर वो पुत्र बाकी सब मूत्र।

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‬: आयुः प्रजाम् धनम् विद्याम्
स्वर्गम् मोक्षम सुखानिच।

: श्राद्ध से तृप्त पितृ आयु संतान धन स्वर्ग विद्या सुख राज्य हेतु आशीष प्रदान करते हैं।।
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🙏🏻 भगवान राम ने महाराज दशरथ का पिंडदान किया तो जब ब्राह्मण भोजन करने आये
: सीता माता कुटिया में छुप गयीं।
: भगवान के पूछने पे सीता माँ बोली

‬: भगवान मैंने आमंत्रित ब्राह्मणों में आपके पिताजी के दर्शन किये। इससे पहले श्वसुर जी  ने मुझे आभूषणों से अलंकृत देखा था।

: अब वे पसीने से मैली वस्त्र वाली मुझे देख अति दुखी होते। अतः मै चली गयी
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‬ 🙏🏻अतः इस समय पितरो के प्रति कर्म आदि उन्हें मिलता है तथा अक्षय फल दायी होता है। इन 15 तिथि में पितृ आशान्वित होकर अपने पुत्र पौत्रों के द्वार पर आ जाते है।
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: आधार के बारे में बताता हूँ ।
‬: शरीर में 9 द्वार है। 10 वा द्वार सूक्ष्म है जो मोक्ष का द्वार है

: शास्त्र कहता है ब्रह्मचारी का मोक्ष का द्वार चौड़ा होता है

: क्योंकि उसके विकार आसक्ति में जाने की संभावना कम होती है

: वह याम नियम से आसानी से ईश्वर प्राप्ति कर सकता है

: पर परिवार में आने के बाद उसकी आसक्ति मोह में फसने की सम्भावना अधिक बढ़ जाती है

: अतः उसका मोक्ष द्वार संकरा  हो जाता है

: अतः पुत्र जब अंतिम पिंडदान गया में करता है उसका भावार्थ सुनिये।।

‬🙏🏻मुझे पैदा करने हेतु इस जीव ने अपने मोक्ष के द्वार को संकरा किया है। इसका उत्तरदायित्व मै लेता हु। इसके मोक्ष द्वार को पुनः चौड़ा करो। इसे मोक्ष प्रदान करें

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