ब्रह्मपुराण अनुसार कार्तिक मास की अमावस्या को अर्धरात्रि के समय लक्ष्मी महारानी सदगृहस्थों के घर में जहाँ-तहाँ विचरण करती हैं। इसलिए अपने घर को सब प्रकार से स्वच्छ, शुद्ध और सुभोभित करके दीपावली तथा दीपमालिका मनाने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होते हैं तथा वहाँ स्थायी रूप से निवास करती हैं। यह अमावस्या प्रदोषकाल एवं अर्धरात्रि-व्यापिनी हो, तो विशेष रूप से शुभ होती है।

प्रस्तुत वर्ष कार्तिक अमावस 14 नवम्बर, शनिवार, 2020 ई. को दोपहर 144.-184. बाद अपराह, सायाहू, प्रदोष निशीथ, महानिशीथ व्यापिनी होगी। अत:'दीपावली पर्व' 14 नवम्बर, शनिवार, 2020 ई. को ही होगा।

विशेष कृत्य-इस दिन प्रात: ब्राह्ममुहूर्त में उठकर दैनिक कृत्यों से निवृत्त हो पितृगण तथा देवताओं का पूजन करना चाहिए। सम्भव हो तो दूध, दही और घृत से पितरों का पार्वणश्राद्ध करना चाहिए। यदि यह सम्भव हो तो दिन भर उपवास कर गोधूलि वेला में अथवा वृष, सिंह, वृश्चिक आदि स्थिर लग्न में श्रीगणेश, कलश, षोडशमातृका एवं ग्रहपूजनपूर्वक भगवती लक्ष्मी का षोडशोपचार-पूजन करना चाहिए। इसके अनन्तर महाकाली का दावात के रूप में, महासरस्वती का कलम, बही आदि के रूप में तथा कुबेर का तुला के रूप में सविधि पूजन करना चाहिए। इसी समय दीपपूजन कर यमराज तथा पितृगणों के निमित्त ससंकल्प दीपदान करना चाहिए। तदोपरान्त यथोलब्ध निशीथादि शुभ मुहूत्तों में मन्त्र-जप, यन्त्र-सिद्धि आदि अनुष्ठान सम्पादित करने चाहिए।

दीपावली वास्तव में पाँच पर्वो का महोत्सव माना जाता है, जिसकी व्याप्ति कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी (धनतेरस) से कार्तिक शुक्ल द्वितीया (भाई-दूज) तक रहती है। दीपावली के पर्व पर धन की प्रभूत प्राप्ति के लिए धन की अधिष्ठात्री धनदा भगवती लक्ष्मी का समारोहपूर्वक आवाहन, षोडशोपचार सहित पूजा की जाती है। आगे दिए गए निर्दिष्ट शुभ कालों में किसी स्वच्छ एवं पवित्र स्थान पर आटा, हल्दी, अक्षत एवं पुष्पादि से अष्टदल कमल बनाकर श्रीलक्ष्मी का आवाहन एवं स्थापना करके देवों की विधिवत पूजार्चना करनी चाहिए।

आवाहन मन्त्र-

'को सोस्मितां हिरण्यप्राकारामा ज्वलन्ती तृप्तां तर्पयन्तीम्।
पोस्थितां पावर्णा तामिहोपहिये प्रियम्।। (श्रीसूक्तम्)।

पूजा मन्त्र-

ॐ गं गणपतये नमः॥ लक्ष्म्यै नमः॥ नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरेः प्रिया।या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात्त्वदर्चनात्॥' से लक्ष्मी एरावतसमारूडोवज्रहस्तो महाबलः। शतयज्ञाधिपो देवस्तस्मा इन्द्राय ते नमः।' मन्त्र से इन्द्र की और कुबेर की निम्न मन्त्र से पूजा करें- 'कुबेराय नमः, धनदाय नमस्तुभ्यं निधपद्माधिपायच। भवन्तु त्वत्प्रसादान्मे धनधान्यादि सम्पदः।।'

पूजन सामग्री में विभिन्न प्रकार की मिठाई, फल-पुष्पाक्षत, धूप, दीपादि सुगन्धित वस्तुएं सम्मिलित करनी चाहिए। दीपावली पूजन में प्रदोष, निशीथ एवं महानिशीथ काल के अतिरिक्ता चौघड़ियां मुहूर्त भी पूजन, बही-खाता पूजन, कुबेर-पूजा, जपादि अनुष्ठान की दृष्टि से विशेष प्रशस्त एवं शुभ माने जाते हैं।

14 नवम्बर, 2020 ई. के चौघड़िया मुहूर्त नोट-(1) चर, लाभ, अमृत और शुभ की चौघड़ियां ग्राह्य होती है।

| दिनकीचौघड़ियां (चं.मि.) गत्रि का चौघड़िया ( घं. मि.) | (2) 25 बजे का अर्थ अर्द्धरात्रि 1 बजे से है तथा 30 बजे का अर्थ कालl6:58 से 8:16 तक लाभ/17:26 से 19:07 तक आगामी दिन प्रातः 6 बजे से है। |शुभ 8:16 से 9:34 तक उद्वेग 19:07 से 20:48 तक | (3) यहाँ चौघड़ियां मुहूर्त 14 रोग 9:34 से 10:52 तक | शुभ 20:48 से 22:30 तक | नवम्बर, 2020 ई. को जालन्धर के दिनमानवरविमान के अनुसार है। अपने उद्वेग 10:52 से 12:11 तक अमृत 22:30 से 24:12 तक | स्थानीय नगर के चौघड़ियां मुहर्च के चर |12:11 से 13:30 तक | चर24:12 से 25:54 तक लिए इसी पंचांग लाभ 13:30 से 14:48 तक | रोग 25:54 से 27:35 तक सूर्योदयास्त सारिणी में से स्थानीय से20:17 तक सूर्योदयास्त निकालकर इसी पंचांग के मृत|1448 स 16:07 तक काल/27:35 स29:17 तक | पृष्ठ नं. 279 का अवलोकन कर |काल 16:07 से 17:26 तक लाभ 29:17 से 30:59 तक चौघड़ियां मुहूर्त निकालें। प्रदोष काल-14 नवम्बर, 2020 ई. को जालन्धर एवं निकटवर्ती नगरों में सूर्यास्त (17--26f4.) से लेकर 24-424 पर्यन्त 20*--084 तक प्रदोषकाल व्याप्त रहेगा। (प्रत्येक नगर के रात्रिमान अनुसार प्रदोषकाल निर्धारित करें। (देखें पृष्ठ नं. 47 इसी पंचांग में) - सायं 194.-26 तक वष (स्थिर) लग्न विशेष प्रशस्त होगा। प्रदोषकाल में वष लग्न.स्वाती (रात्रि 204--094 तक) नक्षत्र, तुलास्थ चन्द्र तथा रात्रि 194--07 तक'लाभ'की चौघड़ियां रहने से 19*:-07मि. से पहिले श्रीगणेश-लक्ष्मी पूजन प्रारम्भ कर लेना चाहिए। इसी काल में ब्राह्मणों तथा आश्रितों को भेंट, मिष्ठान्नादि बॉटना शुभ होगा। निशीथ काल-14 नवम्बर, 2020 ई.को जालन्धर व समीपस्थ नगरों में निशीथकाल रात्रि | 20-08 से 224--514 तक रहेगा। निशीथ-काल में शुभ' की चौघड़ियां 20*--484 से 224-- 304 तक तथा पुनः'अमृत' की चौघड़ियां 224-304 से रात्रि 244--124 तक रहेंगी। | अतः निशीथकाल में भी 20*--484 के बाद शेष सारा समय पूजन आदि कार्यों के लिए शुभ |एवं ग्राह्य रहेगा। इस अवधि में महालक्ष्मी पूजन समाप्त कर श्रीसूक्त, कनकधारा-स्तोत्र तथा लक्ष्मी-स्तोत्रादि मन्त्रों का पाठ करना चाहिए। | महानिशीथ काल-रात्रि 22-514. से अर्द्धरात्रि 25-33मि. तक महानिशीथ काल रहेगा। इस समयावधि में 'अमृत' तथा 'चर' की चौघड़ियां भी अत्यन्त शुभ हैं। इस अवधि में |काली-उपासना, तन्त्रादि क्रियाएं, विशेष काम्य प्रयोग, तन्त्र-अनुष्ठान, साधनाएं एवं यज्ञादि - किए जाते हैं। 24--034 से सिंह लग्न भी विशेष प्रशस्त रहेगा। नोट-अपने स्थानीय नगर में महालक्ष्मी पूजन एवं साधना के लिए प्रशस्त वृष, कर्क व सिंह लग्नों के लिए पृष्ठ 283 का अवलोकन कर निकालें। साधारण जमा/ऋण कर आप निकाल सकते हैं। अबवासम्पर्क करें