• पंचम भाव के नाम : सर्वाथ चिन्तामणिः बुद्धि (मति), प्रभाव (असर), आत्मज (पुत्र), मन्त्र (सलाह का सामर्थ्य), विवेक (भेद), उदर (पट)। फल दीपिकाः राजांक (संप्रभुता का चिन्ह), एक मंत्री, कर (राज्य कर, हस्त, चुंगी), अथमन् (बुद्धि), धी, भविष्य का ज्ञान, असु (जीवन), पुत्र (सुत), उदर (जातर), स्त्रुति (वैदिक ज्ञान, एवं पारम्परिक नियमों की स्मृति)। जातक पारिजातः धी (बुद्धि), देव (देवी-देवता), राजा (स्वामी), पितृनंदन (पिता का पुत्र) एवं पंचक। जातक अलंकार :तनय (संतान), बुद्धि (मेधा), विद्या (ज्ञानोपार्जन) एवं आत्मज (पुत्र)। होरा सारः पुत्र (सुत), वाक् (भाषण), एवं तनुज (संतान)।
  • पंचम भाव उत्तम भावों में से एक है जो जातक के लिए मंगलकारी होगा। यह भाव केन्द्र के पश्चात् आता है एवं पणफर या सफल भाव के नाम से पहचाना जाता है। यह दो भावों में से एक है जो त्रिकोण (या त्रिकोणाकार) भाव कहलाते हैं।
  • पंचम भाव के महत्त्व : पंचम भाव का भाव कारक बृहस्पति है। पराशरः ताबीज, धार्मिक मंत्र, विद्या, ज्ञान, पुत्र, राजसत्ता, निपुणता, सामाजिक पद का पतन। उत्तर कालामृतः वंशज, पिता के धार्मिक गुणी कर्म, एक राजा, एक मंत्री, सद् नियम, यांत्रिक कला, बुद्धि, विद्या, गर्भावस्था, विचारशीलता, छतरी, शिक्षाप्रद कहानियाँ, मंगलकारी पत्र, पहनावे, एक श्रेष्ठ वांछनीय कार्य, पैतृक सम्पत्ति, दूरदर्शिता, पत्नी के भाग्य से समृद्धि, वैश्या के साथ अवैध सम्बन्ध, पाण्डित्य की गम्भीरता, दृढ़ता, रहस्य, शिष्टाचार, समाचारों के लेख, कल्याणकारी, मित्रता, एक दीर्घ साहित्यिक निर्माण, किसी कार्य में नियुक्ति, उदर, मंत्रों द्वारा स्तुति, अगणनीय सम्पत्ति, पके हुए भात का उपहार, धर्म एवं अधर्म में भेद, वेद मंत्रों का उच्चारण, बुद्धि, समीक्षा करने की योग्यता (गहन चिन्तन) अर्थार्जन के मार्ग, उत्सव सम्बन्धी आयोजन जब ढोल नगाड़े बजाये जाते हैं, विशाल सन्तोष, प्रगाढ़ ज्ञान, मंत्री का आनुवांशिक पद।।
  • सर्वार्थ चिन्तामणिः अनेक प्रकार के कार्य, नम्रता, कार्य का निष्पादन, योजना, विद्या, नीति, बुद्धि, वंदना, मंत्रोच्चारण, गर्भावस्था, बच्चे, संतान व सम्पत्ति से प्राप्त बुद्धि एवं प्रसन्नता। होरा सारः किसी की प्रकृति, मानसिक योग्यता की सीमा एवं पुत्र ।