*आज तक आपको ये जानकारी नहीं होगी कि सुदामा जी गरीब थे तो क्यों...


    सभी से निवेदन है
    यह कथा अवश्य पढ़ें🙏

    सुदामा को गरीबी क्यों मिली:::

    अगर अध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखा जाये तो सुदामा जी बहुत धनवान थे।जितना धन उनके पास था किसी के पास नहीं था ।

    लेकिन अगर भौतिक दृष्टि से देखा जाये तो सुदामाजी बहुत निर्धन थे ।

    आखिर क्यों ::::::::

    एक ब्राह्मणी थी जो बहुत निर्धन थी। भिक्षा माँग कर जीवन-यापन करती थी।
    एक समय ऐसा आया कि पाँच दिन तक उसे भिच्छा नहीं मिली।
    वह प्रति दिन पानी पीकर भगवान का नाम लेकर सो जाती थी।
    छठवें दिन उसे भिक्षा में दो मुट्ठी चना मिले । कुटिया पे पहुँचते-पहुँचते रात हो गयी। ब्राह्मणी ने सोंचा अब ये चने रात मे नही खाऊँगी प्रात:काल वासुदेव को भोग लगाकर तब खाऊँगी ।
    यह सोंचकर ब्राह्मणी ने चनों को कपडे़ में बाँधकर रख दियाऔर वासुदेव का नाम जपते-जपते सो गयी ।

    देखिये समय का खेल:::

    कहते हैं:::

    पुरुष बली नहीं होत है,
    समय  होत   बलवान ।

    ब्राह्मणी के सोने के बाद कुछ चोर चोरी करने के लिए उसकी कुटिया मे आ गये।
    इधर उधर बहुत ढूँढा, चोरों को वह चनों की बँधी पुटकी मिल गयी । चोरों ने समझा इसमें सोने के सिक्के हैं । इतने मे ब्राह्मणी जाग गयी और शोर मचाने लगी ।

    गाँव के सारे लोग चोरों को पकडने के लिए दौडे़। चोर वह पुटकी लेकर भागे।
    पकडे़ जाने के डर से सारे चोर संदीपन मुनि के आश्रम में छिप गये।

    (संदीपन मुनि का आश्रम गाँव के निकट था
    जहाँ भगवान श्री कृष्ण और सुदामा शिक्षा ग्रहण कर रहे थे)

    गुरुमाता को लगा कि कोई आश्रम के अन्दर आया है। गुरुमाता देखने के लिए आगे बढीं  तो चोर समझ गये कोई आ रहा है, चोर डर गये और आश्रम से भागे ! भागते समय चोरों से वह पुटकी वहीं छूट गयी।और सारे चोर भाग गये।

    इधर भूख से व्याकुल ब्राह्मणी ने जब जाना ! कि उसकी चने की पुटकी  चोर उठा ले गये ।

    तो ब्राह्मणी ने श्राप दे दिया कि " मुझ दीनहीन असहाय के जो भी चने  खायेगा वह दरिद्र हो जायेगा " ।

    उधर प्रात:काल गुरु माता आश्रम मे झाडू़ लगाने लगीं तो झाडू लगाते समय गुरु माता को वही चने की पुटकी मिली । गुरु माता ने पुटकी खोल के देखी तो उसमे चने थे।

    सुदामा जी और कृष्ण भगवान जंगल से लकडी़ लाने जा रहे थे। (रोज की तरह )
    गुरु माता ने वह चने की पुटकी सुदामा जी को दे दी।

    और कहा बेटा ! जब वन मे भूख लगे तो दोनो लोग यह चने खा लेना ।

    सुदामा जी जन्मजात ब्रह्मज्ञानी थे। ज्यों ही  चने की पुटकी सुदामा जी ने हाथ में लिया त्यों ही उन्हे सारा रहस्य मालुम हो गया ।

    सुदामा जी ने सोचा ! गुरु माता ने कहा है यह चने दोनों लोग  बराबर बाँट के खाना।
    लेकिन ये चने अगर मैंने त्रिभुवनपति श्री कृष्ण को खिला दिये तो सारी शृष्टी दरिद्र हो जायेगी।
    नहीं-नहीं मैं ऐसा नही करुँगा। मेरे जीवित रहते मेरे प्रभु दरिद्र हो जायें मै ऐसा कदापि नही करुँगा ।
    मैं ये चने स्वयं खा जाऊँगा लेकिन कृष्ण को नहीं खाने दूँगा।

    और सुदामा जी ने सारे चने खुद खा लिए।

    दरिद्रता का श्राप सुदामा जी ने स्वयं ले लिया। चने खाकर।
    लेकिन अपने मित्र श्री कृष्ण को एक भी दाना चना नही दिया।🌹

    ऐसे होते हैं मित्र 🙏🏻
    मित्रों ! आपसे निवेदन है कि अगर
    मित्रता करें तो सुदामा जी जैसी करें और कभी भी अपने मित्रों को
    धोखा ना दें ।
    🙏🏻🚩 जय श्री राधे 🚩🙏🏻